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सिरिसंतिनाहचरिए
नरसिंघकुमरस्स कहाणयं
'किं मुहा लेसि रे मज्झ तंबत्तणं, जेण एवंविहं बट्टए पट्टणं ?', एक्वक्केण तो चवइ नायरजणो, 'सामि ! मा रूस एयस्स तेयस्सिणो, जेण रतिंदिवा एस निरु जग्गए, पट्टणं अप्पणा चेव पडियग्गए,' तं निसुणवि राएं पयअणुराएं भणिउ 'जाह नियमंदिरह जिंब सोहणु होसइ, 'तिंव चिंतीसइ, मा कया वि अन्नह मुणह' ॥१३॥२६२६॥ तो जाइ महायणु हिंदु गेहिं, राया वि वियप्पइ निययदेहि, "एउ किंपि असंभवु एत्थु जाउ, नवि नजइ कोवि हु इय सहाउ," एत्थतरि रवि अत्थवणि जाइ, असमत्थु पुरिहि उवयारि नाइ, अहवा वि असत्तउ परुवयारि, अत्थमइ सूरु किर निव्वियारि, संझा वि तस्स पुट्ठीए जाइ, रत्तंबर जलदाणत्थु नाइ, निव्वत्तसंझकरणिउ नरिंदु वीसज्जिय भडसामंतबिंदु,
कयवंऽवेसु नियमंदिराउ, तह निग्गउ जह केण वि न नाउ, १. राई पा० विना ।। २. जिब जे० ।। ३. तिव जे० ।। ४. हिदु त्रु० ।। ५. पुरिहिं त्रु० ।।