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सिरिसंतिनाहचरिए
कहकहवि हु लग्भइ माणुसत्तु, कुल-देसमाइसामग्गिजुत्तु, जुग-समिलनाइ तहिं जिणह धम्मु, जइ कहवि हु लग्भइ परमरम्भु, तत्थ वि य पमाउ दलेवि सत्तु, धम्मम्मि समुज्जउ करहु गत्तु, पाहु पंचैव महव्वाई, खंताइगुणोहसमन्नियाई, पुणु पंचहिं समिइहिं समिय होह, तिहिं गुत्तिहिं गुत्त विसिटुबोह, अन्ना विकिरय बहुविह करेह, एमाइ सव्बु संजमु धरेह, अह कह विन सेक्क एउ करेवि, तो लेहु अणुब्वय गुण धरेवि, ' इय सूरिवयणमायन्निऊण, जंपेइ नराहिवु भाविऊण, 'मह देहि सामि ! पव्वज्र अज्जु, जिं साहमि सयलु वि निययकञ्जु,' जंपेइ सूरि तो वयणु एउ, 'मा करहि नरेसर ! कालखेड, ' 'इच्छं 'ति भणेविणु तक्खणेण, पडिवन्न दिक्ख पुहईसरेण, विरइ सिक्खत बिह सिक्ख, उवसग्ग सहइ अचंततिक्ख,
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१. करह का० ।। २. पालह का० । ३. सक्कहि एउ पा० ॥ ४. लेउ पा० ॥ ५. जं जे० ॥
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नरसिंघ कुमरस्स कहाण
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