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सिरिसंतिनाहचरिए
नरसिंघकुमरस्स कहाणयं
रायाऽऽएसिं तो सामग्गी, रज्जऽभिसेयह किय जा जोग्गी, तो अभिसेउ विहिउ सई राई, वजंतई बहुतूरनिहाई, भणिउ 'नवज्ज करेविणु सायरु, करहि रज्जु जा चंद-दिवायरु, नाई पय पालहि परमेसर, जा दरिद्द जा मज्झिम ईसर,' पय वि पयंपिय 'एहु मई राणउ, दिन्नउ तुम्हहं सुटु सयाणउ, आराहेजह एहु सविसेसु', पय वि पयंपइ 'देवाऽऽएसु,' इय जा सिक्ख देइ जियसत्तु, ता उज्जाणपालु संपत्तु, 'बद्धाविज्जसि नरवर ! जंपई, सूरिजयधरु आगउ संपइ,' तं निसुणेविणु निवु रोमंचिउ, नाइ नीवु जलधारासिंचिउ, जाइ गुरुहु पयवंदणवत्तिए, वंदइ पाय अणोवमभत्तिए, 'जयहि जयंधरसूरि ! सुसामिय !, मत्तमहागइंदगइगामिय !, जयहि सुगुरु ! अस्संजमवारय !, दुद्धरपंचमहब्बयधारय !,
१. ता जे० का० ।। २. एउ पा० ।। ३. "विजसु पा०॥ ४. आइउ पा०॥