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सिरिसंति
नाहचरिए
मायंदिदारयाणं कहाणयस्सुवणयं
जह लाहऽत्थी वणिया संसारगया तहा जिया सव्वे । जह रयणदीवदेवी मुणाहि तह अविरई पावा ॥१४८॥२४७३॥ जम्हा हु अविरईए णडिया भोगेसु संपसज्जंति । तम्हा स चिय पावा विमोहणी सव्वजीवाण ॥१४९॥२४७४॥ जह तीए आघयणं तह तीए विनडियाण दुहनिवहो । आघायमंडलगओ जह पुरिसो तह गुरू मुणह ॥१५०॥२४७५॥ जह तेण तीए रूवं सयमणुभूयं निवेइयं ताणं । तह साहेइ गुरू वि हु भव्याणं अविरइसरूवं ॥१५१॥२४७६॥ जह एसा पाविट्ठा सयमणुभविया मए अणत्थयरी । ता तुम्हाण वि एसा दाही बहुदुक्खरिंछोलिं ॥१५२॥२४७७॥ जह तेहिं संपुट्ठो जइ एवं तो कहेहि अम्हाणं । देवीए सयासाओ छुट्टिस्सामो कहं अम्हे ? ॥१५३॥२४७८॥ तायह दुक्खभयत्ता भणंति भव्या वि धम्मदेसयरं । जह तेण सेलगाओ नित्थरण ताण अक्खायं ॥१५४॥२४७९॥ तह एसो वि हु भव्याण कहइ चरणाओ तीए नित्थरणं । जह सेलगपटुिम्मिं ते तत्भीया समारूढा ॥१५५॥२४८०॥ तह भव्वा वि हु चरणं अविरइभीया द्वयंपि गिण्हंति । जह तरियव्यो जलही तह संसारो इहं जाण ॥१५६॥२४८१॥ जह तीए मंडलऽग्गेण खंडिओ णियवसम्मि संपत्तो । तह अविरईए वसओ जीवो दुहभायणं होई ॥१५७॥२४८२॥ जह देवीनिरवेक्खो पत्तो धण-सयण-जीवियसुहाई। तह अविरइनिरवेक्खो निव्याणसुहाई पावेइ ॥१५८॥२४८३॥ भणियं चागमे
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१. जह जीयो निर पा० ॥