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________________ सिरिसंतिनाहचरिए मायंदिदारयाणं कहाणयं "छलिओ अवयक्खंतो, णिरावयक्खो गओ अविग्घेणं । तम्हा विसयपसंगे निरावयक्खेण भवियव्यं" ॥१५९॥२४८४॥ [ज्ञाताधर्मकथा० अध्ययन ९ सूत्र ८५] ता भो ! एवं नाउं तुभे वि हु मा पुणो वि भोगेसु । चित्तं दाहिह" भणिए ‘इच्छं' ति भणंति विणएण ॥१६०॥२४८५॥ तत्तो पवत्तिणीए समप्पिया रयणमंजरी गुरुणा । काऊण तवमुयारं दोन्नि वि पत्ताई परमपयं ॥१६१॥२४८६॥ ॥मित्रानंद-अमरदत्तकथानकं समाप्तम् ॥ ता नरवइ ! तुह कहिया मित्ताणंदाइणो इमे सव्वे । अप्पेण वि दोसेणं पत्ता दुक्खं महाघोरं" ॥५०९॥२४८७॥ एवं च सोऊण नराहिवेण भयवसुक्कंपियसव्यंगोवंगेणं भणियं-'भय ! जइ एगेगस्स वि दुब्भासियवयणस्स एत्तिओ विवागो, तो अम्हाणं अणेगदुव्वयणाइअणत्थसयदूसियाणं का गइ भविस्सइ ?' तओ भणियं भयवया'महाराय ! मा संतप्पसु, जओ सव्वे वि भवंतरकया वि पावपव्वया मुसुमूरिजंति सव्वविरइमहावज्जेण' । जओ भणियमागमे"सब्या विहु पयजा पायच्छित्तं भवंतरकडाण । पावाणं कम्माण ता जत्तो तत्थ कायव्यो" ॥१॥२४८८॥ एयं च मणिमहारविंदविणिग्गयमयरंदामयं पाऊण सवणंजलीहिं भणियं नरेंदेण-'जइ एवं तो जा अपराजियाऽणंत २६१ १. पबयणसारे ज्ञाताधर्म० ।। २. पत्ता दोस महा का० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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