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________________ का वर्णन किया है मगर वह वर्णन आश्चर्योत्पादक है, देखें पृ० १२५ । (गोलवाड) मध्यज्यपदार्थों के विषय को पढ़ने से आचार्य श्री जी ने नगरी को प्रतिदिन लूटने वाले छद्मवेषी चौर और नगरी के अधिपति प्रबलप्रतापी पराक्रमी राजा नरसिंह के बीच जो परस्पर वार्तालाप करवाया है एवं इन दोनों के बीच हुए युद्ध का जो वर्णन किया है वह अवश्य पठनीय है। इस प्रकरण के अध्ययन से गोल्लयमण्डल (गोलवाड) मध्यप्रदेश, कर्नाटक, कोंकण आदि प्रदेशों की तत्समय में प्रचलित भाषा के दो तीन प्रयोग एवं उस उस प्रदेश में विशेष प्रचलित भोज्यपदार्थों के विषय में सामान्य रूप से जाना जा सकता है, देखें पृ० २९७-२९८ । और पृ० ३०१ पर वर्णित उपर्युक्त दोनों पात्रों के रोमांचक युद्धवर्णन को पढ़ने से तो यूं प्रतीत होता है कि मानो आचार्य श्री जी स्वयं युद्ध के दर्शक एवं विवेचक हों। यदि कोई व्यक्ति अपने पिता या अन्य अनुभवी अभिभावक वृद्धपुरुषों से पृथक् होकर अन्य गांवो में व्यापार, व्यवहार करना चाहता है तो उस व्यक्ति को मार्ग में एवं लक्ष्य स्थान पर भी कैसे कैसे सावधान रहना चाहिए इस विषय में सार्थ से युक्त होकर अन्य द्वीप में व्यापार के लिए जा रहे स्वयं के पुत्र धनदत्त को पिता रत्नसार श्रेष्ठी ने जो शिक्षाएं दी हैं वे अवश्य ध्यान रखने योग्य हैं, देखें पृ० ३५०। चरित्रकथा के नायक चक्रवर्ती एवं तीर्थंकर परमात्मा श्री शान्तिनाथस्वामीजी के अन्तिम भव का वर्णन करते हुए परमात्मा के जन्मनगर हस्तिनापुर का वर्णन, माता, पिता, मन्त्री, नगरवासीयों का स्वरूप वर्णन बहुत सुंदर है, देखें पृ० ५२९-५३० । P
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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