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________________ ####### आसन कम्पन के कारण अवधिज्ञान के उपयोग से जिनजन्म को जानकर जन्ममहोत्सव मनाने के लिए दिशा, विदिशाओं से आई हुईं ५६ दिक्कुमारिकाओं द्वारा भिन्न-भिन्न बोली गई स्तुतियां बहुत भाव-भक्तिपरक, जिनस्वरूपबोधक एवं स्मरणीय हैं, देखें पृ० ५३७- ५४६ । सुवर्णसिद्धि के लिए उपयोगी रसपूर्ण कूप में पहले से गिरे हुए जिनशेखर नामक श्रावक को कूप मे रहते हुए ही सुलस श्रावक द्वारा जो अन्तिम आराधना करवाई गई वह आराधना तो मात्र स्मार्य ही नहीं, बल्कि अर्थविचारणापूर्वक प्रतिदिन स्वाध्याय करने योग्य है, देखें पृ० ७५३-७५९ । आदि, ऐसे अनेकों वर्णन, प्रसंग, ग्रन्थ में सुगमता पूर्वक अध्ययन के लिए प्राप्त हैं जो कि अनेक दृष्टिकोणों से लोकों के लिए ज्ञातव्य, पठनीय, मननीय, स्मरणीय और आचरणीय हैं। ग्रन्थकार आचार्य श्री जी ग्रन्थकार आचार्य श्री देवचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के जीवन, प्रवृत्तियों आदि से सम्बन्धित विषयों एवं प्रसंगों का उल्लेख अन्यान्य ग्रन्थों में अल्प रूप से पाया जाता है। मगर जो भी प्रसंग प्राप्त होते हैं वे उनकी साधनाप्रियता, शासननिष्ठा, परमात्मभक्ति, ज्ञानगरिमा और निःस्पृहता के ध्रुवतारक के समान अमर प्रतीक हैं। २७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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