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________________ निद्रसूरि संस्थापित ताड़पत्रीय जैन ग्रन्थ भंडारनुं सूचिपत्र में क्रमाङ्क नं० १५१ । ग्रन्थनाम प्रकरणपोथी । इस पोथी में संगृहित कुल २४ प्रकरणों में से १२वां प्रकरण सुलस श्रावक द्वारा करवायी गई अन्तिम आराधना स्वरूप है। मगर वहां इसे उपदेशकुलक नाम से निर्दिष्ट किया गया है। प्रस्तुतग्रन्थ में कुछ विशेषस्थान इस ग्रन्थ में कई वर्णन, प्रकरण तो विशेष रूप से पठनीय, मननीय और स्मरणीय हैं। विस्तार के भय से यहां नहीं दे रहा हूं, किन्तु कुछ स्थानों का उल्लेख करना उचित समझता हूं । प्रथम भव का आलेखन करते हुए पूज्य आचार्य श्री जी ने आगन्तुक मणिकुण्डलीनामक विद्याधर के मुख से जिनदेशनास्वरूप चतुर्विध धर्म-दान, शील, तप और भाव का जो उपदेश कहलवाया है वह बहुत प्रेरक है, देखें पृ० १५-१९ । वासुदेव त्रिपृष्ठ और प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव के बीच हुए युद्ध का वर्णन तो चलचित्र की भान्ति जीवन्त सा प्रतीत होता है, देखें पृ० ८३-८५ । राजा अमिततेज के राजभवन में स्थित जिनालय का वर्णन अद्भुत है। आचार्य श्री जी ने मात्र छ ही श्लोकों में जिनमन्दिर २५ RSS
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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