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मायंदिदारयाणं कहाणयं
सिरिसंति- तत्थ वि य अपेच्छंती नाणेण निरूविऊण तो मुणइ । सव्यं सूलारोवियपुरिसाईगमणपजंतं ॥९३॥२४१८॥ नाहचरिए तो कोवतंबिरऽच्छी निम्मलजलधोयनहयलसवन्न । खग्गं गहेत्तु पत्ता खणेण सा ताण पट्ठीए ॥९४॥२४१९।।
'हा दास ! मया तुटभे जे छड्डित्ता ममं वयह एवं । ता आगच्छह सिग्धं, जइ इच्छह जीवियं निययं ॥९५॥२४२०॥ अह भो ! जइ नाऽऽगच्छह तो एएणं सुतिक्खखग्गेणं । पाडिस्सामि सिराई ताडफलाइं व णिभंत' ॥९६॥२४२१॥ एवं जपंतीए तीए जक्खेण भाणिया वणिया । 'मह पुटुिडिया तुभे मा बीहेजाह एईए' ॥९७॥२४२२॥ तो जक्खवयणसंधीरणाए मोत्तूण ते भयं दो वि । जा जंति निरवयक्खा ता सा नाउं विभंगेण ॥९८॥२४२३॥ जंपइ अणुकूलाई 'हा सामिय ! नाह ! कीस णिरवेक्खा । में मोत्तूणं दीणं एवं संपढिया तुभे ? ॥१९॥२४२४॥ सामिय ! न हु पडिवन्नं जुञ्जइ गरुयाण मेल्लिउं एवं । अविणयभरियं पिजओ गरुया पालेति पडिवन्नं ॥१००॥२४२५॥ भणियं च
"छिज्जउ सीसं, अह होउ बंधणं, चयउ सव्वहा लच्छी । पडिवन्नपालणेसु पुरिसाणं जे होइ त होउ ॥१०१॥२४२६॥ ॐ सच्छेए वि कए न मुयइ मायंगसंगहं विंझो। अविणयभरियं पि जणं गरुया पालेंति पडियन्नं" ॥१०२॥२४२७॥
अहव न जुत्तं एवं णिम्मलकुलसंभवाण पूरिसाण । जं किर णियजीहाए पडिवन्नं अन्नह कुणंति ॥१०३॥२४२८॥
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१. तालफ पा० विना ।। २. जओ ग° 0 विना ।। ३. पा० बिना- पालिंति ७० का०। पालंति जे० ।। ४. अहह न ३०॥