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मायंदिदारयाणं कहाणयं
सिरिसंति- संपत्तम्मि य समए अम्हे रक्खेह इय भणेजाह' । ते वि दुयं गंतूणं जक्खं पूयंति कुसुमेहिं ॥८२॥२४०७॥ नाहचरिए चिटुंति जोडियकरा पुरओ अह आगयम्मि समयम्मि । जक्खेणं घुटुम्मि भणंति 'तारेह देवऽम्हे' ॥८३॥२४०८॥
। तो तव्वयणं सोउं पञ्चक्खं भणइ सेलओ जक्खो। 'तारेमि, किंतु निसुणह मह वयणं अवहिया होउं ॥८४॥२४०९॥
तुम्हं मए समाणं गच्छंताणं समेहिई पाया । जंपिहिइ साणुरागा वयणाई कामजणगाई ।।८५॥२४१०॥
ता जइ तुडभे तीए उवरिं काहेत्थ कह वि अणुरायं । तो उल्लालि य तुम्हे मयरहरे पक्खिविस्सामि ॥८६॥२४११॥ * जइ पुण तीए तुभे णिरवेक्खा होहिहा तओ भद्द ! । खेमेणं चंपाए जणगसमीवे पराणिस्सं ॥८७॥२४१२॥
किं बहुणा ? दिद्विय वि तीए सम्माणणं ण कायव्यं । जइ वि हु दरिसेइ भयं, तह वि भओ णो गणेयव्यो ।।८८॥२४१३॥
एयाए वत्थाए जइ सक्कह णिव्वहित्तु तो चडह । मह पट्टीए' ते वि हु मन्नेउ झत्ति आरूढा ॥८९॥२४१४॥ * तो तुरयरूवधारी आगासेणुप्पइत्तु सो जक्खो । वच्चइ तुरियं तुरियं मज्झं मझेण जलहिस्स ॥९०॥२४१५॥
एत्थंतरम्मि सा रयणदीवदेवी नियम्मि पासाए । पत्ता जाव णिरूवइ, पेच्छइ नो ताव ते कहिं वि ॥९१॥२४१६॥ चिंतइ "नं पुविल्ले वणसंडे ते गया भविस्संति" । तत्थ वि जाव न पेच्छइ जोयइ ता सेसवणसंडे ॥९२॥२४१७॥ *१. रक्खेहि का०।। २. का० विना तारेहिं जे० । तारेहि पा० त्रु० ॥ ३. °य अहयं म जे० बिना ।। ४. बबत्थाए का० विना ॥
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