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________________ मित्ताणंदाईणं कहाणय सिरिसंति- चिंतइ य "मयंकाओ पडंति जइ कह वि असणिवुढीओ । तो रयणमंजरीए पासे निव्वडइ एवं पि ॥२५८॥२०५३॥ नाहचरिए अहवा किं चिंताए ? जम्हा दढपच्चओ इमो अत्थो । हा! हा! अहो ! अकज्जं जं मज्झ कलंकिओ बंसो ॥२५९॥२०५४॥ एयाए पावाए करेमि गुरुणिग्गहं पयत्तेण । नेइ खयं सव्वं पि हु न जाव नयरीजणं एवं" ॥२६०॥२०५५॥ इय चिंतिऊण बलिओ पुणरवि सीहासणम्मि उवविह्यो । मित्ताणदं पुच्छइ 'किं केवलसाहसेण तए ॥२६१॥२०५६॥ रक्खियमेयं मडयं? उयाहु किं अत्थिमंतसिद्धी वि? जंपइएसो 'मह कुलकमागओअत्थिमंतो वि' (ग्रंथ३०००)॥२६२॥२०५७॥ ५ तं सोउं ऊसारिय लोयं अह भणइ णरवई 'भद्द ! । जा एसा मह धूया सा मारी नऽस्थि संदेहो ॥२६३॥२०५८॥ * जइ अत्थि का वि सत्ती तो एयं निग्गहेहि' इय भणिए। भणइ इमो 'पेच्छामि किं मह सज्झा असज्झा वा ?' ॥२६४॥२०५९॥ राया वि भणइ ‘एवं करेहि' इय जंपिओ इमो जाइ । पासम्मि कुमारीए सा वि विबुद्धा पलोएइ ॥२६५॥२०६०॥ "किं हंत! इमो पुरिसोमह पासंएइ ? अहव ताएण। पटुविओ को विइमो?, अन्नह पुरिसाऽऽगमो कत्तो?" ॥२६६॥२०६१॥ इय चिंतिऊण तीए दिन्नम्मि वरासणम्मि उवविह्यो । जंपइ 'तुज्झ सयासे कजेण समागओ कुमरि !' ॥२६७॥२०६२॥ 'जइ एवं भण कज्ज' कुमरीए पयंपियम्मि तो भणइ । 'सो हं भद्दे ! जेणं गहियं हत्थाओ तुह कडयं ॥२६८॥२०६३॥ २२३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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