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________________ सिरिसंतिनाहचरिए 16065號 'पाडलिपुत्ते णयरे पासाओ रयणसारकारविओ । किं दिट्ठो भद्द ! तुमे मह मइनिप्फन्नओ सो उ' ॥ १४० ॥ १९३५॥ 'आमं' ति जंपइ इमो 'किंतु तहिं सालभंजिया अमुगा । किं पडिछंदयघडिया, उयाहु तुह बुद्धिनिम्माया ? ' ॥ १४१ ॥१९३६॥ 'उज्जेणिपुरवरी महसेणनिवस्स चारुधूयाए । पडिछंदएण घडिया मए इमा' आह थवई वि ॥१४२॥१९३७॥ 'घडइ इमं सव्वं पि हु' चित्ते परिभाविऊण तो भणइ । मित्ताणंदो 'दिवसं पुच्छित्ता आगमिस्सामि' ॥ १४३ ॥ १९३८ ॥ ‘एवं' ति तेण भणिए णिग्गंतुं जाइ हट्टमज्झम्मि । विणिवट्टेउं वत्थे संवलयं कुणइ दव्वेणं ॥ १४४ ॥१९३९॥ अक्खंडपयाणेहिं उज्जेणि पाविओ वियालम्मि । वसिओ य वारवासिणिदेवउले पोलिमज्झम्मि ॥१४५॥१९४० ॥ एत्थंतरम्मि पडहयसद्देण पयंडघोसणं सुणइ । 'चत्तारि रयणिजामे जो रक्खइ मडयमेयं तु ॥ १४६ ॥१९४१ ॥ दीणाराण सहस्सं पयच्छई तस्स ईसरो सेट्ठी' । इय सोऊणं तेणं दारिट्ठो पुच्छिओ एवं ॥ १४७ ॥१९४२ ॥ 'किं एत्तियम्मि कन्जे दिजइ भो ! अइपभूयधणमेयं ?' । सो अक्खइ 'पहिय! इमा मारीए उबहुया नयरी ॥ १४८ ॥। १९४३॥ ६ तं मारिउवहयमिणं निक्कालइ जाव ईसरो ताव । अत्थमिओ दिवसयरो पोली वि य ढक्किया एसा || १४९ ।। १९४४॥ मारीहयं ति काउं एयं न हु कोवि रक्खइ भएण' । इय सुणिऊणं चिंतइ एसो वि हु " दव्वरहियाण || १५०॥१९४५॥ सिज्झति न कज्जाई, ता एयं रक्खिऊण दव्यमिणं । गिण्हित्ता नियकज्रं करेमि बंधूण पच्छण्णं” ॥ १५१ ॥१९४६॥ १. कुणइ पा० ॥ मित्ताणंदाईणं कहाणय २१३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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