SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिसंतिनाहचरि 9454545454545 भाइ णिवो 'मह एवं अच्छरियं कहसु मा विलंबेहि' । जंपइ सो वि हु 'सामिय! मह कुलकुद्धेण केणाऽवि ॥ ५३ ॥१८७० ॥ देवेण इमं विहियं पनरसमं वट्टए जओ दिवसं । एयस्स सहत्थेणं तालयमज्झम्मि खित्तस्स ॥ ५४ ॥ १८७१ ॥ अह अहं पि सामिय ! ण हु पत्तिज्जामि एरिसे कजे' । पुच्छइ राया 'कह पुण नायं एयं तए कजं ? ' ॥५५ ।। १८७२ ॥ नेमित्तियाइ सव्वं जा कहियं ता खमावए राया। 'खमसु महायस ! एवं अयाणमाणेण जं विहियं ॥ ५६ ॥ १८७३ ॥ 'को तुज्झ देव ! दोसो ?, दोसो मह संतियाण कम्माण' । अवियारियकारितं भणइ णिवो 'एस मह दोसो' ॥५७॥१८७४॥ 'संसारम्मि असारे एवंविहवसणभागिणो जीवा । जेण न कोवि हु जीवो चुक्कइ पुव्यक्कयाओ इहं ॥ ५८ ॥। १८७५ ॥ जिण सुरवइ-चक्कहरा बलदेवा वासुदेवमाईया । विज्जाहरा य विविहा विडंबिया पुव्यकम्मेहिं ॥५९॥१८७६ ॥ वेखाए अम्हारिसा उ किर केत्तिया नरवरिंद ! ? । ता मा संतप्प दढं कुण धम्मं' भणइ इय मंती ॥ ६०॥१८७७ ॥ राया वि हु संवेगाओ मंतिणा तेण चैव य समेओ । पुत्तं वेत्तु रज्जे लेइ वयं, कुणइ तवमउलं” ॥६१॥१८७८॥ ता मित्त ! पुरिसयाराओ आवई रक्खिया जहा तेण । तह अम्हे वि हु एयं रक्खेमो मा विलंबेह” ॥६२॥१८७९॥ मित्ताणंदो जंपइ ‘केरिसओ सो पुणो उ कायव्वो ?' । 'एयं मोत्तूण वडं नई च अन्नत्थ बच्चामो' ॥८५॥१८८०॥ १. कहिउ त्रु० ॥ १० नाणगब्भस्स कहाण २०७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy