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________________ मित्ताणंदाईणं कहाणयं सिरिसंति- नियपरिवारं सव्वं काऊणं सवहसावियं भणइ । 'उज्जेणि पत्तेहिं वत्तव्यं जुयलयं जायं ॥५५॥१७८८॥ नाहचरिए ‘एवं' ति परियणेणं पडिवन्ने जाइ निययगेहम्मि । वद्धावणाइ सव्यं करेइ हल्लप्फलो इन्भो ॥५६॥१७८९॥ * कुमरस्स अमरदत्तो त्ति नाम विहियं कुमारियाए वि । सुरसुंदरि त्ति नाम काऊणं णिव्वुओ जाओ ॥५७॥१७९०॥ बढइ य अमरदत्तो कीलंतो बहुविहाहि कीलाहिं । जाओ य तस्स मित्तो मित्ताणंदो त्ति नामेणं ॥५८॥१७९१॥ तत्थेव य वत्थव्यस्स वरसुओ सायरस्स सेटुिस्स । मित्तसिरीनामाए भजाए कुच्छिसंभूओ ॥५९॥१७९२॥ ताणं च तहिं मेत्ती अईव सहवढियाण तो जाया । किं बहुणा ? समचित्ता सहति न परोप्परविओगं ॥६०॥१७९३॥ अह अन्नया कयाई संपत्तो तत्थ पाउसो कालो । अलिकज्जलकालेहिं जलएहिं नहं समाउलियं ॥६१॥१७९४॥ वित्थरिओ घणसद्दो वियारयंतो व्य विरहिणीहिययं । तज्जीयलुद्धविज्जू कयंतजीह व्व विष्फुरइ ॥६२॥१७९५॥ मुयइ कयंतो व्व घणो धारानियरं पयंडकोयंडो । विरहियणमारणत्थं सुतिक्खसरपसरनियरं व ॥६३॥१७९६॥ * वित्थरइ दद्दररवो सव्वत्तो विरहिवज्झपडहो व्व । तम्मरणे रोयंति व दिसाओ जलबिंदुअंसूहि ॥६४॥१७९७॥ दीसइ नवहरियंकुरसमोत्थया इंदगोवयसणाहा । बहुरयणजडियमरगयकुट्टिमसरिसा वसुमई वि ॥६५॥१७९८॥ एयारिसम्मि काले कुमरा ते दो वि सिप्पणइतीरे । वडपायवआसन्ने दंडावेडीहिं कीलंति ॥६६॥१७९९॥ १. जुवलयं त्रु० का० ।। २. नवरुहियं " का० ।। २००
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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