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________________ मच्छोयरकहाणय सिरिसंति- राया वि कालहरणस्स भीरुओ सहिऊण जोइसियं । पुच्छइ विवाहलग्गं तेण वि गणिऊण कहियमिणं ॥५१०॥१५४२॥ नाहचरिए जह 'देव ! पभायम्मि कुमरी-कुमराण सोहणं लग्ग' । राया वि तयं सोउं झडत्ति कारेइ सामगि ॥५११॥१५४३॥ तो बिइयम्मि दिणम्मि परिणीया तेण सा विभूईए । भुंजइ पमुइयचित्तो तीए समं उत्तमे भोए ॥५१२॥१५४४॥ एवं अच्छंताणं अन्नदिणे झत्ति नरवरिंदस्स । जाया सिरम्मि वियणा उप्पन्नं दारुणं सूलं ॥५१३॥१५४५॥ जाओ य दाहजरओ तेहिं तओ पीडिओ दढं एसो। वेजकिरियाए रोगो उवसमइ न थोवमेत्तं पि॥५१४॥१५४६॥ तह मंत-तंत-जंताइएहिं विहिएहिं बहुपयारेहिं । उवयारेहिं कहिँचिवि उवसमइ न राइणो पीडा ॥५१५॥१५४७॥ * एवं वटुंतम्मि आउलिओ तक्खणेण णिवलोगो । सोऊण इमं धणओ समागओ रायपासम्मि ॥५१६॥१५४८॥ घेत्तूण तयं रयणं रोयहरं चक्किणीए जं दिन्नं । पुच्छइ य 'देव ! साहह, का पीडा तुम्ह देहम्मि?' ॥५१७॥१५४९॥ अवलंबिऊण सत्तं जपइ राया वि 'वच्छ ! मह देहे । जा वट्टइ किर पीडा सा सत्तूण पि मा होउ ॥५१८॥१५५०॥ वच्छय ! जाणामि अहं निग्गच्छहिं एव ताव मह पाणा?' तं सोउं धणएण वि ओहलियं ते महारयणं ॥५१९॥१५५१॥ १०) भणिओ य 'पियह एवं देव ! जलं, जेण उवसमइ पीडा' । पीए य तम्मि राया मुक्को णीसेसरोगेहिं ॥५२०॥१५५२॥ १७२ १. तीय त्रु० ।। २. °बमित्तं का० ॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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