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सिरिसंतिनाहचरिए
तेहिं वि कहियं ‘सामिय ! सूरणरेंदस्स नणु सुया एसा । नामेणं सिरिसेणा, रूवेणं विजियरइरूवा ॥ ४६६ ॥१४९८॥ तीए वि कुमरो दिट्ठो न चेव रइनाहगोयरे पडिया । नाऊण वि तं कुमरं णिब्भर अणुरायरसबसयं ॥ ४६७॥१४९९॥ दंसणमवि नो वंछइ, किं पुण परिभोगमाइसंबंधं । कुमरो पुण तीए कए अईववेयल्लयं पत्तो ॥ ४६८ || १५००॥ न गओ कीलाहेउं, बलिउं सगिहम्मि चेव आयाओ । तीए रूवक्खित्तो न कुणइ अह किंचि कायव्वं ॥ ४६९॥१५०१॥ न करइ देवयपूर्य, माया-वित्ताण कुणइ नोौं विणयं । न रमइ मित्तेहिं समं, कलासु नो कुणइ अब्भासं ॥४७०॥१५०२ ॥ न पढावइ सुय-सारिय, पडियग्गइ नेय बाल आरामे । किं बहुणा भणिएणं ? वयणं पि ण देइ कस्साऽवि ॥ ४७१ ॥ १५०३ ॥ नीससइ दीहदीहं, हसइ खणं, सुन्नयं पलोएइ । कंपावइ सिरकमलं, विहुणइ करपल्लवे अहियं ॥ ४७२ ॥ १५०४ ॥ हुंकारे खणेणं, खणेण जोइ व्व सुन्नओ होइ । उत्थल्लइ सयणगओ तत्तसिलापडियमच्छो व्व ॥ ४७३ | १५०५॥ एवंविहं च दद्धुं मित्ता विन्नायसयलपरमत्था । गंतुं निवस्स पासे कर्हेति 'कुमरो न सत्थो' त्ति ॥४७४॥१५०६॥ सोऊण तयं राया तेहिं समं जाइ कुमरपासम्मि । दट्टु कुमरसरूवं जंपइ 'आणेह भो ! बेजं' ॥४७५॥१५०७॥ हसिऊण हिययमज्झे मित्ता वि परोप्परं पलोयंति । एत्थंतरम्मि पत्तो वेजो धन्नंतरिसरिच्छो || ४७६ ॥ १५०८ ॥
१. तीय पा० विना ।। २. इह पा० । ३. नो पूर्व का० ॥। ४. मच्छु व्व त्रु० ।। ५. मेत्ता जे० ॥
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मच्छोयरकहाण
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