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________________ सिरिसंतिनाहचरिए “जं किर विहिणा लिहियं तं चिय परिणमइ, किं वियप्पेण ? । इय भाविऊण धीरा विहुरे विण कायरा होंति” ॥ ३३॥१०६५॥ तं पेच्छिऊण धणओ हियए चिंतेइ सुटु तुटुमणो । “लद्धा अहो ! समग्घा एसा गाहुल्लिया अज्ज || ३४ ॥ १०६६॥ सव्वस्सं पि हु दिजउ जइ कह वि तहा वि पावए नेय । एईए फुडं मोल्लं अहो ! सलाहा इमा सट्टी" ॥३५॥ १०६७॥ एत्थंतरम्मि पत्तो जणओ पुच्छइ य 'पुत्त ! किं किंचि । ववहरियं अज्ज तए, उयाहु नो ?' भाणिए एवं ॥ ३६ ॥ १०६८॥ पासट्ठिएहिं लवियं 'ववहरियं अज तुज्झ पुत्तेण । गहिया एक्का गाहा दीणाराणं सहस्सेणं' ॥३७॥१०६९॥ तं सोऊणं सेट्ठी जंपइ कोवेण फुरियअहरोहो । 'खाहिसि एरिसएणं वंबहारेण ण संदेहो ॥३८॥१०७० ॥ तासु एयाओ ठाणाओ, उवविसाहि अन्नत्थ । जेण सयं चेव अहं करेमि कय- विक्कयं किंचि ' ॥३९॥१०७१॥ भणिओ एसो विहु विणिग्गओ उडिऊण हट्टाओ। “जं किर विहिणा लिहियं इच्चाई" मणेण चिंततो ॥ ४० ॥ १०७२॥ णिग्गच्छइ णयराउ वि अडवीए सम्मुहं अह पयट्टो । पच्चासन्नम्मि य पुरवरस्स अह उत्तरदिसाए ॥ ४१ ॥ १०७३॥ चिए अरणं संपत्तो तत्थ दिणऽवसाणम्मि । पेच्छइ य तप्पएसे महामहंत सरं एक्कं ॥ ४२ ॥ १०७४॥ अवि यतुंग - वित्थणपालीए संसोहियं, मच्छ-जलहत्थि - मगराइसंखोहियं । सरसफलणमियतरुणिवहसुविचित्तयं, वियडसोवाणपंतीहि सुविभत्तयं ॥ ४३ ॥ १०७५ ॥ १. ववसाएणं पा० ।। २ किरि जे० ॥ मच्छोयरकहाण १३०
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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