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सिरिसंतिनाहचरिए
चित्तंगओ वि जाओ सहसा भिउडीकरालदुप्पेच्छो । उक्कंटइओ रणरसभरेण मायंगदेवो वि ||४५ ||८८५ ॥ रागेण विदिट्ठी विहिया गुंजद्धरायघडिय व्व । अप्फालइ भुयदंडे पुरपरिहसमे सुवेगो वि ॥ ४६ ॥ ८८६ ॥ उन्नामइ वच्छयलं पहारसयथवुडियं मयंको वि । आहणइ करेण करं कोववसा चंदकंतो वि ॥४७॥ ८८७ ॥ कोविनिवेस दिट्ठी कोयंडे, कोवि तह य कुंतग्गे । कुंगीए कोवि, कोवि हु सेल्लम्मि, मोग्गरे कोवि ॥४८॥८८८॥ कवि हु बावलम्मिं, कवि हु भल्लम्म डावए दिट्ठि । छुरियाए कोवि मुट्ठि उवेइ अइसमरसद्धालू ॥ ४९ ॥८८९॥ इय खुहियं अत्थाणं नाणाविह भावसंगयं दहुं । भणइ सिरिअमियतेओ राया अइधीरगंभीरो ॥५०॥८९०॥ 'किमणेण णिप्फलेणं अकालजलयाण डंबरेणं व ? । ता होह कज्जसारा उंबर वड-पिप्पलतरु व्व ॥ ५१ ॥८९१ ॥ संप्राविऊण परिसं सिरिविजयणराहिवस्स तो देइ । विज्रं सत्थावरणिं तह बंधणमोयणिं चेव ॥ ५२॥८९२॥ एक्क्कं चिय साहइ दिणसत्तगसत्तगेण परितुट्ठो । नाऊण सिद्धविज्जं संपेसइ असणिघोसुवरिं ॥ ५३ ॥ ८९३ ॥ निययएहिं समेयं तेसिं नामाणिमाणि केसिंचि । सिरिरस्सिवेग कुमरो तह कुमरो अमियवेगो य ॥ ५४ ॥ ८९४ ॥ आइच्यजसो वि य अक्ककित्ति-अंक्कप्पही तहऽक्करहो । चित्तरहो भाणू वि य भाणूवेगो य रविवेगो ॥ ५५ ॥ ८९५॥ रवितेओ किरणजवो सहरसंकिरणो पभाकरो चेव । एमाइयाणि पंच उ सयाणि कुमराण सूराणं ॥ ५६ ॥ ८९६॥
१. अक्कप्यभो पा० ।। २ किरिण पा० ॥। ३. किरिणो पा० ॥
चउत्थ-पंचमभवग्गणाई
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