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________________ कल्प. सुबो. 00000000000000000000000000000000000000000000000000 अट्ठमभत्तियस्स भिवखुस्स तओ० तंजहा-आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा, वासावा. विकिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडि०, सेविय णं असित्थे-नो विय णं ससित्थे, वासावा० भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए, चतुर्मासकं स्थितस्य ( अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स ) नित्यं अष्टमकारिणः भिक्षोः ( कप्पति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए) कल्पन्ते त्रीणि पानकानि प्रतिग्रस्तुं (तं जहा ) तद्यथा (आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियर्ड वा ) आयामकोऽवश्रावणं, सौवीरं काञ्जिकं, शुद्धविकटं उष्णोदकं ॥ ( वासावासं पज्जोसवियस्स) चतुर्मासकं स्थितस्य ( विक्टिभत्तियस्स भिखुस्स) अष्टमादुपरि तपःकारिणः भिक्षोः ( कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए ) कल्पते एक उष्णोदकं प्रतिग्रहीतुं ( सेविय णं असित्थे नोविय णं ससित्थे ) तदपि सिक्थुरहितं नैव सिक्थुसहितं ॥ (वासावासं पज्जोसवियस्स) चतुर्मासकं स्थितस्य ( भत्तपडियाइक्खियस्म भिक्खरस) भक्तप्रत्याख्यानकरस्य अनशनकारिणः भिक्षोः ( कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहित्तए) कल्पते एक उष्णोदकं 0000000000000000000000000000000000000000000000000000 Jain Education in For Private & Personel Use Only |w.jainelibrary.org
SR No.600080
Book TitleKalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages618
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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