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________________ कल्प. ॥२४॥ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000 भारहे वासे दाहिणढभरहे, इमोसे ओसपिणीए सुसमसुसमाए समाए विइकंताए, सुसमाए समाए || सुबोविइक्ताए, सुसमदुसमाए समाए विइक्वंताए, दुसमसुलमाए बहुविइक्ताए सागरोवमकोडाकोडीए वायालीसवाससहस्सेहि ऊणिआए पश्चहत्तरिए वासेहि अद्वनवमेहि य मासेहिं सेसेहि(भारहे वासेत्ति) भरतक्षेत्रे (दाहिणभरहेत्ति) दक्षिगाभाते (इनोसे ओतप्पिणीएति) यत्र समये समये रूपरसादीनां हानिः स्यात् सावसर्पिणी, ततोऽस्यां अवसर्पिण्यां (सुसमसुसमाएत्ति ) सुषमसुषमानाम्नि ( समाए विइकंनाएत्ति ) चतुःकोटाकोटिसागरप्रमाणे प्रथमारके अतिक्रान्ते ( सुसमाए समाएत्ति ) सुषमानाम्नि त्रिकोटाकोटिसागरप्रमाणे द्वितीयारके ( विइकंताए ) अतिक्रान्ते (सुसमदुसमाए समाएत्ति) सुषमदुःषमानाम्नि द्विकोटाकोटिसागरप्रमाणे तृतीयारके ( विइकंताए) व्यतिक्रान्ते अतीते (दुसमसुसमाए समाएत्ति) दुःषमसुषमानाम्नि चतुर्थारके | ( बहुविइकंताएत्ति) बहु व्यतिक्रान्ते किञ्चिदूने, तदेवाह-( सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहरसेहिं ऊणियाएत्ति) द्विचत्वारिंशद्वर्षसहस्योना ( ४२००० ) एका सागरकोटाकोटिश्चतुर्थारकप्रमाणं, ॥२४॥ तत्रापि चतुर्थारकस्य (पञ्चहत्तरीए वासेहिं अहनवमेहि अमासेहिं सेसेहिति) पञ्चसपति (७५) वर्षेषु सार्धाष्ट 000000000000000000000000000000000000000000000000000 Jain Education Intel For Private Personal Use Only Mainelibrary.org
SR No.600080
Book TitleKalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages618
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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