SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || 8 || • संपादकीय श्री दृष्टिवाद नामना १२ मां अंगमानां प्रत्याख्यानप्रवाद नामना नवमापूर्वमांथी श्रीभद्रबाहुस्वामि महाराजे दशाश्रुतस्कंधनी रचना करी. तेमां आठमा अध्ययन रूपे कल्पसूत्रनी रचना करी, तेनी उपर समर्थ गीतार्थ महामहोपाध्याय श्रीधर्मसागरगणीवरे सं. १६२८ मां श्रीकल्पकिरणावली नामनी टीका रची. ते कल्पकिरणावलीने अमे बन्ने ग्रन्थमालाओ द्वारा बहार पाडीओ छीओ. कल्पकिरणावलीम मूल पाठोनी टीकामां पूर्व पाठोनो अतिदेश घणो करेलो छे. तेथी उपा० विनयजयजी म० जे संवत १६९६ मां सुबोधकानी रचना करी. ते सुबोधिका सरळ होवाने लीधे अत्यारे वाचनमां चाले छे, पण कल्प किरणावली तेमां आधार रूप छे ओम कहेतुं अतिशयोक्ति वाळं नथी. कारण के सुवोधिकाकार थे टीकामां जणावे छे के "विशेषार्थिना कल्प किरणावल्यादयो विलोक्या" ओम जणावे छे. अथी ओम मानतुं ज पडे के उपा० धर्मसागरजी म० आगमना अजोड अभ्यासी हता, तेओश्रीओ अनेक ग्रन्थो रचेला छे. प्रवचनपरीक्षा नामनो अजोड ग्रन्थ रच्यो छे। अने तेने आचार्य प्रवर श्री विजय सेनसूरीश्वरजी म जे हाथीनी अंबाडीओ मानपूर्वक वधावेलो छे. उपा० श्रीए ज्यां समाधान न मेळवी शायुं त्यां ' तत्त्वम् केवलीगम्यम्', एम कहीने पोतानुं भवभोरुपणुं जणान्युं छे. Jain Education International — For Private & Personal Use Only 11 8 1 www.jainelibrary.org
SR No.600079
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSuryodaysuri, Dharmsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1989
Total Pages458
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy