SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमती धनियुक्तिः / // 10 // संपादकीय। अर्थ सुलभ होय ते ते गाथाओ पर अवचरी न बनावतां जे दुर्बोध छे ते पर ज अवचरी तथा भावार्थ जेवु' लखाण लखी प्रार्थमिक साधुजीवनवाला माटे पू. आचार्यदेवश्रीए महान उपकार कयों छे। प्रतिओनो परिचयः-आ अवचरीन संपादन करवा फंडना कार्यवाहक श्रीयुत् केशरीचंदभाईए एक हस्तलिखित प्रतनी प्रेसकोपी मने आपी, पण मारु मन न संतोषातां में अनेक ग्रंथभंडारोमाथी बीजी बीजी अवचरीओ मंगावी तेमांथी बे प्रतने मुख्यता आपी छ / (1) कानपुरना हस्तलिखित भंडारनी प्रत जेनी र संज्ञा आपी छे / (2) श्रीसीमंधरस्वामि जैन हस्तलिखित ज्ञानभडार-सूरत जेनी s संज्ञा आपी छे / कानपुरनी प्रत महद् अंशे शुद्ध पण प्रारंभना 4 पाना वगरनी छे, ज्यारे सूरतनी प्रत सम्पूर्ण तथा मरोडदार अक्षर तेमज शुद्धप्रायः अने सुवाच्य छ अने आज बे प्रतिओना पाठांतरो लीधा छे / बीजी बे प्रतोनी पण प्रसंगे प्रसंगे मदद लीधी हती, पण अल्प लीधी होवाने कारणे उल्लेख कर्यों नथी / विशेषता ए छे के एक ज नामवाला अवचूरीकारनी आबे प्रतिओमां केटलेक स्थळे घणु ज शब्दवैषम्य आवे छ / भावार्थ मां एक रहे छे पण शब्दकृत भेद घणी जग्याए देखाय छे तेनु शु कारण ? ते शोधवा विज्ञप्ति छ / // 10 // Jain Educati o nal For Privale & Personal use only l inelibrary.org N
SR No.600075
Book TitleOgh Niryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Gyansagarsuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_oghniryukti
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy