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________________ अत एतावत एवाधिकस्य सम्भव इति भावना, चम्म उत्ति प्रक्रमाचर्मपक्षिणः- चर्मचटकाद्याः, चर्मरूपा एव हि तेषां पक्षा इति, तथा रोमप्रधानाः पक्षा रोमपक्षास्तद्वन्तो रोमपक्षिणो राजहंसादयः, समुद्गपक्षिणः-समुद्गकाकारपक्षवन्तस्ते च मानुषोत्तराद्वहिर्दीपवर्तिनः, विततपक्षिणो यै विस्तारिताभ्यामेव पक्षाभ्यामासते, इह च यत्क्षेत्रस्थित्यन्तरादि प्रत्येक प्राक्तनसदृशमपि पुनःपुनरुच्यते न पुनरतिदिश्यते तत्प्रपञ्चितज्ञविनेयानुग्रहार्थ, एवंविधा अपि प्रज्ञापनीया एवैति ख्यापनार्थ चेत्यदुष्टम् ॥ १८२-९३ ॥ १५५५-६६ ॥ इत्थं तिरश्चोऽभिधाय मनुजानभिधातमाह मनुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमाइ मणुया, गन्भवतिया तहा ॥ १५६७ ॥ गन्भवतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । अकम्मकम्भभूमा य, अंतरद्दीवगा तहा ॥ १५६८ ॥ पनरस तीसइविहा (तिसंपन्नरस विहा पा०), भेआ अट्ठवीसई । संखा उ कमसो तेसिं, इह एसा वियाहिया ॥१५६९॥ संमुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ आहिओ। लोगस्स एगदेसंमि, ते सब्वेवि वियाहिया ॥ १५७० ॥ संतई पप्पणाईया० ॥ १५७१ ॥ पलिओवमाई तिन्नि य, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई मणुयाणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १५७२ ॥ पलिओवमाई तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडिपुहुत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१५७३ ॥ कायठिई मणुयाणं, अंतरं तेसिमं भवे । अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥ १५७४ ॥ एएसिं | वन्नओ चेव० ॥१५७५ ।। XXXXXXXXXXXX मनुजखरूपम् JainEduca For Private & Personal use only enebrary.org
SR No.600070
Book TitleUttaradhyayanani Uttararddha
Original Sutra AuthorChirantanacharya
AuthorKanchansagarsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1889
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size22 MB
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