________________
चरणवि
उत्तराध्य. सुखावहमेव शुभावहमेव वा, यथा चैतदेवं तथा फलोपदर्शनद्वारेणाह-यं 'चरित्वा' आसेव्य बहवो जीवाः 'तीर्णाः
अतिक्रान्ताः 'संसारसागरं भवसमुद्रं मुक्तिमवाप्ता इत्यभिप्राय इति सूत्रार्थः ॥ बृहद्वृत्तिः ॥६१२॥
F एगओ विरई कुज्जा, एगओ अपवत्तणं । अस्संजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥२॥रागद्दोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू संभई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥३॥ दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं, तियं । जे भिक्खू चयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥४॥ दिव्वे य जे उवस्सग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे। जे भिक्खू सहई निचं, से न अच्छह मंडले ॥५॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥६॥ वएसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छद मंडले ॥७॥ लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ |मंडले ॥८॥ पिंडग्गहपडिमासु, भयहाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥९॥ मएस बंभगुत्तीसु, भिक्खुधम्ममि दसविहे । जे भिक्खु जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥१०॥ उवास
गाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥११॥ किरियासु दाभूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥ २२॥ गाहासोलसएहि, तहा
अस्संजमंमि अ । जे भिक्खू जयई निचं, सेन अच्छइ मंडले ॥१३॥ बंभंमि नायज्झयणेसु, ठाणेसु यऽसमा
ARMACOOLESA
ध्य० ३१
॥६११॥
LE
Jain Education Inter
For Private & Personel Use Only
R
ainelibrary.org