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________________ योगः, प्रक्रमाचात्मन एव 'विकरिता च' विक्षेपकश्चात्मैव तेषामेव, अतश्चात्मैव 'मित्रम्' उपकारितया सुहृत् 'अमित्तंति 'अमित्रं च' अपकारितयाऽसुहृत् । कीडक सन् ?-'दुप्पट्ठियसुप्पटिओ'त्ति, दुष्टं प्रस्थितः-प्रवृत्तो दुष्प्र-12 स्थितः दुराचारविधातेतियावत् सुष्टु प्रस्थितः सुप्रस्थितः सदनुष्ठानकतैतियावत् योऽर्थः, एतयोविशेषणसमासः, दुष्प्रस्थितो ह्यात्मा समस्तदुःखहेतुरिति वैतरण्यादिरूपः सुप्रस्थितश्च सकलसुखहेतुरिति कामधेन्वादिकल्पः । तथा |च प्रव्रज्याऽवस्थायामेव सुप्रस्थितत्वेनात्मनोऽन्येषां च योगकरणसमर्थत्वान्नाथत्वमिति सूत्रद्वयगर्भार्थः॥ पुनरन्यथाऽनाथत्वमाह इमा हु अन्नावि अणाहया निवा!, तामेगचित्तो निहुओ सुणेहि मे। नियंठधम्मं लहियाणवी जहा, सीयंति एगे बहुकायरा नरा ॥३८॥ जे पव्वइत्ताण महव्वयाई, सम्मं (च)नो फासयई पमाया। अणिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिंदइ बंधणं से ॥ ३९ ॥ आउत्तया जस्स य नत्थि कावि, इरियाइ भासाइ तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगुंछणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥४०॥ चिरंपि से मुंडरुई भवित्ता, अथि-15 रव्वए तवनियमेहि भट्ठे। चिरंपि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥४१॥ पुल्लेव मुट्ठी जह से असारे, अयंतिते कूडकहावणे य । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्धए होइ हु जाणएसु ॥४२॥ कुसीललिंगं इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय व्हइत्ता । असंजए संजय लप्पमाणे, विणिघायमागच्छद Sain Educatie Iational For Privale & Personal use only Pjainelibrary.org
SR No.600067
Book TitleUttaradhyayani Part_2
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages570
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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