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उत्तराध्य.
अध्ययनम्
बृहद्धत्तिः
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व्याख्या-निगदसिद्धाः । नवरमाभिरध्ययनविशेषनामान्युक्तानि, एतन्निरुक्त्यादि च नामनिष्पन्ननिक्षेपप्रस्ताव 1 एवाभिधास्यते ॥ अधिकारानाह
पढमे विणओ बीए परिसहा दुल्लहंगया तइए । अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमाएत्ति ॥ १८॥ मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विज्जा चरणं च छटुअज्झयणे ।रसगेहिपरिच्चाओ सत्तमे अट्टमि अलाभे॥१९॥ निकंपया य नवमे दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इकारसमे पूया तवरिद्धी चेव बारसमे॥२०॥ तेरसमे अ नियाणं अनियाणं चेव होइ चउदसमे। भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ॥२१॥ पावाण वजणा खलु सत्तरसे भोगिड्डिविजहणटारे । एगुणि अप्परिकम्मे अणाहया चेव वीसइमे ॥२२॥ चरिया य विचित्ता इक्वीसि बावीसिमे थिरं चरणं । तेवीसइमे धम्मो चउवीसइमे य समिइओ॥२॥ बंभगुण पन्नवीसे सामायारी य होइ छबीसे । सत्तावीसे असढया अट्रावीसे य मुक्खगई ॥२४॥ ॥ एगुणतीस आवस्सगप्पमाओ तवो अ होइ तीसइमे । चरणं च इकतीसे बत्तीसिपमायठाणाइं ॥२५॥
***SUSLAATISSA
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