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________________ Jain Education वारं वा न याणइ, चिंतेइ - अन्नपानै हरेद्वालान्, यौवनस्थान् विभूषया । वश्यां स्त्रीमुपचारेण, वृद्धान् कर्कश सेवया ॥ १ ॥ तीसे विइज्जगाणि चेडरुवाणि रुक्खे पलोएन्ताणि अच्छंति, तेण तेसिं पुष्काणि फलाणि दिन्नाणि, पुच्छियाणि य-का एसा ? कस्स वा ?, ताणि भणति अमुगस्स सुण्हा, ताहे सो चिंतेइ केण उवाएण तीए समं संपओगो हवेज्जा ?, ताहे एगा चरिगा भिक्खट्ठाए सवत्थ अडंती दिट्ठा अबलोइया, चिंतियं कुसुंभसदृशप्रभं तनुसुखं पटं प्रावृता, नवागुरुविलेपना शरदि चन्द्रलेखा इव । यथा हसति भिक्षुकी सुललितं विटैर्वन्दिता, ध्रुवं सुरतगोचरे चरति गोचरान्वेषिणी ॥ १ ॥ ततो तं ओलग्गइ सा तुट्ठा भणइ - किं करेमि ?, अमुगस्स सुन्हं संपादेहि, सा गया तीए सगासं, भणिया य-जहा अमुगो एवंगुणजाइओ ते पुच्छइ, तीए रुट्ठाए पत्तुल्गाणि धोवंतीए मसिलित्तेण हत्थेण पट्टीए आहया, पंचगुलीतो जायातो, वारेण य निच्छूढा, सा आगया साहड़-नामपि न सहइ, तेण नायं जहा कालपंचमीए अहं हक्कारितो, ताहे पंचमी दिवसे पुणरवि पट्टविया पवेसजाणणानिमित्तं, ताहे सलजाए आहणिऊणं असोगवणियाछिड्डियाए निच्छूढा, सा आगया साहइ - जहा नामपि न सहइ, आहणित्ता अवदारेण धाडिया, तेण णाओ पवेसो, तेणेव अवदारेण सो अतिगतो, असोगवणियाए सुत्ताणि, ससुरेण दिट्ठाणि, तेण नायं जहा न मम पुत्तत्ति, पच्छा से पायाओ णेउरं गहियं, चेइयं च तीए, भणिओ सो अणाए-नास लहुं सहायकिज्जं करेजासु, पच्छा इयरी गंतूण भत्तारं भणइ - घम्मो एत्थं, असोगवणियं जामो, गयाणि, सुत्ताणि य, जाहे सो सुत्थं सुत्तो ताहे उट्टवत्ता भणति तुज्झ एयं कुलाणुरूवं ? जं मम पायातो ससुरो नेउरं गेहइ, सो भणइ-सुयाहि पभाए लभिहिति, थेरेण सिहं, सो रुट्ठो भणति विवरीओ सि थेरा !, सो For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org
SR No.600063
Book TitleAvashyaksutram Part_3
Original Sutra AuthorMalaygiri, Bhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1936
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size17 MB
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