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________________ श्रीआव श्यकमलयगिरीय वृत्तौ नमस्का ॥ ५०२ ॥ Jain Education भणियं तुन्भं वेव सगासातो सुया देसणा, निवारणं च, तीए भणियं अहो ! ते पंडियत्तणं वियारक्खमगं धंमयापरिणामो, मया सामण्णेण बहुदोसमेयं भणियंति से उवदि, वारिया य, किमेतावता दुच्चारिणी होइ ?, ततो सो लञ्जितो, मिच्छादुक्कडं से दवावितो, चिंतियं च जाए-एस ताव मे कसिणधवलपडिवज्जगो, बितिओऽवि एवं चैव विन्नासितो, नवरं सा भणिया-किं बहुणा ?, हत्थं रक्खेज्जासित्ति, सेसविभासा तहेव जाव एसोऽवि मे कसिणधवलपडिवज्जगोत्ति, एत्थ |पुण इमाए नियडीए अब्भक्खाणदोसतो तिथं कम्मं निबद्धं, पच्छा एयस्स अपडिक्कमिय भावतो पवइया, भायरोवि से सह जायाहिं पवइया, अहाउगं पालित्ता सुरलोगं गयाणि, तत्थवि अहाउयं पालित्ता भायरो से पढमं चुया सागेए नयरे असोगदत्तस्स समुद्ददत्तसागरदत्ताभिहाणा पुत्ता जाया, इयरीऽवि चइऊण गयउरे नगरे संखस्स इब्भस्स सावगस्स धूया जाया, अतीव सुंदरित्ति सबंगसुंदरी से नामं कयं, इयरीतोऽवि भाउज्जायातो चविऊण कोसलाउरे नंदणाभिहाणस्स इन्भस्स सिरिमइ - कंतिमइनामातो धूयातो आयातो, जोवणं पत्ताणि सवाणि, सबंगसुंदरीवि कहिंपि साकेया गयपुरमागएण असोगदत्तसेट्टिणा दिट्ठा, कस्सेसा कण्णगत्ति कस्सवि समीवे पुच्छियं, नायं संखस्स, ततो सबहुमाणं समुद्ददत्तस्स मग्गिया, लद्धा, विवाहो कतो, कालंतरेण सो विसज्जायगो समुद्ददत्तो अइगतो, उवयारो से कतो, वासहरं सज्जियं एत्थंतरंमि य सवंगसुंदरीए तं नियडिनिबंधणं पढमकम्मं उदितं, ततो भत्तारेण से वासघरट्ठिएण वोलेंती | देविगी पुरिसच्छाया दिट्ठा, ततो तेण चिंतियं-दुट्ठसीला मे महिला, कोइ अवलोइडं गतोति, पच्छा सा आगया, न तेण बोल्लाविया, ततो अट्टदुहट्टयाए धरणीए चेव रतिं गमिता, पभाए से भत्तारो अणापुच्छिय सयणवग्गं एगस्स धिजाइगस्स For Private & Personal Use Only मायायां सर्वांग सुंदरी ॥ ५०२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600063
Book TitleAvashyaksutram Part_3
Original Sutra AuthorMalaygiri, Bhadrabahuswami
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1936
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size17 MB
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