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________________ एतदवसाने च निःशेषितं प्रमाणद्वारमित्युपसंहरति-'से तं पमाणे'त्ति । प्रमाणद्वारं समाप्तम् ॥ १५० ॥अथ क्रमप्राप्त वक्तव्यताद्वारं निरूपयितुमाह से किं तं वत्तव्वया ?, २ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-ससमयवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमयपरसमयवत्तव्वया । से किं तं ससमयवत्तव्वया?, २ जत्थ णं ससमए आघविज्जइ पण्णविज्जइ परूविजइ दंसिजइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ, से तं ससमयवत्तव्वया । से 'किं तं परसमयवत्तव्वया ?, २ जत्थ णं परसमए आघविज्जइ जाव उवदंसिजइ, से तं परसमयवत्तव्वया । से किं तं ससमयपरसमयवत्तव्वया ?, २ जत्थ णं ससमए परसमए आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ, से तं ससमयपरसमयवत्तव्वया। इआणी को णओ कं वत्तव्वयं इच्छइ?; तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति, तंजहा-ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं ससमयपरसमयवत्तव्वयं, उज्जुसुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तंजहा-ससमयवत्तव्वयं परस Jain Education a l For Private 3 Personal Use Only L iainelibrary.org
SR No.600060
Book TitleAnuyogadwarasutram Uttarardham
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size23 MB
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