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दातानी कृपावडे प्रसिद्ध करवा भाग्यशाली थयो छ. आ पछी थोडा समयमां ज "अङ्क ९०" मो श्रीरूपचन्द्रपाठककृत श्रीक्षमाकल्याणपाठकनी 'प्रकाश' टीका सहित 'गौतमीयमहाकाव्य' जनसमक्ष समर्पण करवामां आवशे. ए उपरांत प्रेसमां नीचे मुजबना प्रन्थो चालु करायेला छे:
(१) सटीक वैराग्यशतक-वैराग्यरसायन-पद्मानंदशत वगेरे त्रण शतको उल्लासिकमस्तोत्र, धर्मशिक्षाप्रकरण आदि (२) अभिधानचिंतामणि कोष-निघंटुशेष, एकाक्षर नाममाला-लिंगानुशासन, शब्दभेदप्रकाश, शिलोंछ ए अने (३) जैनकुमारसम्भव सटीक.
उपरांत (१) 'प्रमाणनयतत्त्वलोकालंकार रत्नाकरावतारिका टीका, टिप्पण, पंजिकासहित' तथा (२) 'आवश्यक-नियुक्ति छायासहित' अने (३) दिर्घाल खर्चवालो शक्य एटलो सम्पूर्ण अने सुन्दर श्रीमद् आनंदसागरसूरीश्वरजीनी देखरेख नीचें 'प्राकत | कोश' छपाववा सम्बंधी विचार कार्यकरो करी रह्या छे. वळी श्रावकना कृत्योर्नु साचं मार्गदर्शन करावनार श्रीरत्नशेखरसूरिरचित श्री श्राद्धविधि" "विधिकौमुदी' नामनीस्वोपज्ञवृत्तिसह मूळ, तेमज तेनुं गुजराती भाषांतर छपाववानी अत्यावश्यकता कार्यवाहकोना ध्यानमा छे अने सत्वर ते काम हाथमा लेवानी तेओने ऊमेद छे. __ प्रस्तुत मूल ग्रंथना प्रणेता 'संतिकरं स्तोत्र'ना कर्ता सहस्रावधानी सुप्रसिद्ध आचार्यप्रवर श्रीमन्मुनिसुन्दरसूरिजी छे, के जेओ विक्रम संवत् १४७८ थी १५०३ सुधी आचार्यपदे रही आ भारतभूमिमां विचर्या हता अने शासनप्रभावक तरीके ख्यातिमंत थया हता.
प्रस्तुत ग्रंथ शिवाय बीजा पण अनेक ग्रंथो आ सूरिवरे रच्या छे, जेवा के४१ विद्यगोष्ठी, श्लोकसंख्या ८९७, रच्या काल वि० सं० १४५५ । *२ उपदेशरत्नाकर (स्वोपज्ञवृत्ति), श्लोकसंख्या ७६७५