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सह तेण ठिआ गंतुं सा परसायत्व अविसाया ॥ ६८ ॥ तं तारिसंपि सुरवरसरिसंपिव परमपिम्मरीईए । चिट्टइ सुस्मूसंती सईण चरिअं महच्छरिअं॥६९ ॥ तं असमंजसमसमं दहमसत्तोब झत्ति संपत्तो । नहदीवो परदीवं संझावि सइन्च तमणुगया ॥ ७० ॥ मिच्छत्तभरोध परो ति मिरभरो तत्थ जाब वित्थरिओ । सुषसत्थस थरो ता तीए दइअरस पत्थरिओ ॥ ७१॥ तत्थ पमुत्तेण तया तेण इमा अक्खिा परिक्खट्टा । भद्दे ! दुक्खसमुह पडिआसि हहा कह अमुद्दे ? ॥ ७२ ॥ मुद्धाइ कयमजुत्तं पढमं तुमर मरण तो रन्ना । विहियं तु अजुत्तयरं जणओ कह एरिसं कुजा ? ॥ ७३ ।। अपत्यं दुरपत्यं स्थाजावल्पप्रेमवत्तया । प्रेमातुरौ तु पितरौ, स्यातां कुपितरौ कथम् ? ॥ ७४ ॥ अजवि किमवि न नटुं नेव विणटुं च गच्छ सिच्छाए। अवरं कंचिवि परं वरसु वरं होसु कयकिच्चा ॥ ७५ ॥ संपइ न कोइ पिच्छइ न य पुच्छइ किंषि गच्छ सच्छदं । लच्छीण मयच्छीण य सबहिं ठाणं सबहुमाणं ॥ ७६॥ नाहं निअनिवाहंगिहु काउ पहू पकुच्छणिज्जो अ। ता मज्झ अमेज्झस्स व नाओ चाउच्चिा सुदूरं ॥ ७७ ॥ तं सुणिअ धुणिअसीसा ढंकिअकन्ना कहेइ सा कना। हा नाह ! दाहहेऊ कहमेरिसमसरिसं भणसि ? ॥ ७७ ॥ अणंता पावरासीओ, जया उदयमागया । तया इत्थित्तणं पत्तं, सम्मं जाणाहि गोअमा ! ।। ७९ ॥ इय वयणाओ पढम महिलाजम्मं हवेइ अइअहमं । तंपि जइ सीलभटुं ता उच्छिष्टुं अणिटुं च ।। ८० ॥ तम्हा तुम्हाणं चित्र चरणा सरणा इमंमि जम्मंमि । निअपुवकम्मदिन्नो पई सईणं हि देवत्व ॥ ८१ ॥ इअ तीइ दबत्तणओ चित्तंमि चमकिओ पमुइओ अ। भूवो भणेइ भद्दे ! कहमेवं जम्मनिबाहो ? ॥ ८२ ॥ ता जइ कहमवि अहमवि हवामि नवजुवणो सुदिवनणू। ता चेव हवइ जुत्तं असरिसजोगंमि को णु रसो?॥ ८३॥ एवं भणित्तु सुरवरसत्तीइ करितु झत्ति निअरूवं । देवत्व दिवरूवं विम्हिअमुइअं कुणइ दइअं॥ ८४ । सामि ! किमिमंति पुच्छइ जाव इमा ताव पिच्छइ अउच्छं । नत्थेव देवभवणं व निम्मिश्र
महता उच्छिा
कहम जम्मा पर सईणं
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