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________________ आ०प्र० ज्ञानाचार. ॥८॥ किं मुहमिटेण कूडसिटेणं ? । निअनिअकम्मपसाया सुहं दुहं वा असेसाणं ।।५१ ॥ पुन्नुदए जीवाणं राया तूसेइ देइ सबंपि । पावुदए उ जमो इव रूसेइ हरेइ सबंपि ॥५२॥ भणिअंच-"सबो पुवकयाणं कम्माणं पावर फलविसेसं । अवराहेसु गुणेमु अ निमित्तमित्तं परो होइ" ॥५३ ॥ तं सुणिअ धरणिरमणो रुटमणो भणइ दुहि दुविअडे । पिच्छसु निकम्मफलं निअभणिअफलं च तकालं ॥५४॥ इअ भणिअ भणइ निअए नरे नसोऽवि सोहिउँ नयरे । दुत्थिअकुटिअमेगं दमगं आणेह आहविउ ॥ ५५ ॥ तो तेहिं भमतेहिं दिट्ठो सो कुडिओ ठिओववणे । कहमवि महिवइ पुरओ आणीओ बंदगहिउच्च ॥५६॥ तो सा कमा रण्णा भणिआ मन्नेसि कम्ममेव तुमं । दिन्नं कम्मेण इमं वरसु वरं होसु कयकिच्चा ॥ ५७ ॥ अहहा कि भावित्तिय जणमि सबमि कंपिअमणमि । मुअणत्तणेण कुट्ठिअनरंमिवि णिवारयंतमि ॥५८॥ कम्मं चेव पहाणीकाऊण अणूणसत्तजुत्ताए । तीए तस्सेव करो गहिओ करगहणरीईए ॥५९ ॥ जुगलं ॥ तइआ गुत्तं एगो लग्गविऊ वागरैइ वरलग्गं । संपइ वट्टइ एरिस बारसवरिसेऽवि न हु मुलहं ॥ ६०॥ सवपयारेण सुहं असमाणमिमाण सुरवराण व । कहमवि धुवं भविसइ लग्गवलेणं भणामि इमं ॥ ६१॥ अह रन्नाऽणुनाओ इमो इमं गिहिऊण गच्छाहि । एईइ सबकज्जं कारिज जहेव दासीए ॥ १२॥ साऽवि निवेण सको उल्लविआ विहिअचोरिअब अरै । एअं जावज्जीवं निवहसु परं सुहं लहसु ॥ ६३ ॥ सावि तहत्ति कहित्ता गिणिहत्ता तं करंमि अमरंव । साहसिआ निस्सरिआ सिरिब सहसा पिउगिहाओ ॥६४॥ नरवइनिवारणाओ दासीवि न निग्गया सममिमीए । निवकोवभया नवि कोवि तं अणिव आलबए ॥६५॥ केवि निवइस्स दोसं दिति तया केऽवि तीइ कुमरीए । कोवरस केवि रन्नो अन्ने पुण मंतिपमुहाणं ॥६६॥ अवरै कुमरीगुरुणो अवरै मुद्धत्तणस्स पुण तीए । कुग्गहगहस्स एगे एगे कम्मस्स धम्मविऊ ॥ ६७ ।। युगलं ॥ एवं नवनववयणे नयरजगे नयरबाहिरुजाणे। । Jain Education intodalonal For Private & Personal Use Only almw.jainelibrary.org
SR No.600056
Book TitleAchar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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