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पुंडरीक
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वानी साथै आव श्वाननी धर्म भावनाना संबंधमां पुंडरीकस्वामीए कहेळ भावमहिमा प्रदर्शितः विजयसेन राजानो पूर्वभव अने देव द्रव्य भक्षण उपर गुणाराम श्वानना पूर्व भवनुं वर्णन अने विजयसेन राजानुं दीक्षाः ग्रहक
सर्ग ७ मो - पुंडरीकस्वामीनुं मथुरापुरीमां आगमन, त्यां धन श्रेष्ठीनुं पोताना पुत्र देवदत्तने लइने आषवुं. श्रेष्ठीए देवदत्तन स्त्री विमळाना दुर्भिगंधपणानो करेलो प्रश्न, पुंडरीकस्वामीए कहेल देवदत्तनो तथा मुनिनी दुगंच्छा, मंदिरनी आशातना अने प्राणिओनो वियोग करवाना फळ प्रदर्शित देवदत्त अने विमळाना पूर्वभवनुं वृत्तांत अने देवदत्तनुं त्रीश हजार वणिकोनी साथे दीक्षाग्रहण.
सर्ग ८ मो - भरतचक्रवर्ती प्रथमतीर्थपतिने वांदवा जाय छे. ते बखते तेमनी साथै पुंडरीकस्वामीने नहि देखवायी प्रभु तेनुं कारण पूछे छे. प्रभु कहे छे के पुंडरीक गणधर विमळाचळ प्रत्ये जाय छे अने त्यां तेमने केवळज्ञान उत्पन्न थवानुं छे. भरतराजानी ते वखते संघ काढीने सिद्धाचळप्रत्ये जवानी इच्छा थाय छे अने प्रभुने साथै पधारवा विज्ञप्ति करे छे. पछी प्रभु तथा संघ सहित भरतराजा नीकळी मथुरामां पुंडरीकस्वामीनी साथे मछे के संघः सिद्धाचळनी ते वखतना तळाटी रुप वणारसीपुरीमां पहोंचे छे. भरतराजा अहिं विमळाचळना दर्शननो अपूर्व उत्सव करे छे. चैत्री पूर्णीमाने दिवसे पुंडरीकस्वामी पांच क्रोड मुनिओ साथे अनशन करी केवळज्ञान पामी मोक्षे जाय छे. भरतराजा सिद्धा चक्र उपर जिनमासाद करे छे. प्रांते आदिजिननो परिवार बतावी अष्टापद उपर आदिश्वर प्रभुना निर्वाणनुं वर्णन अने, अष्टापद उपर भरतराजाए करावेल जिनमंदिरनुं वर्णन छे.
छेवटे समाप्तिमां-भरतराजाने अरिसाभुवनमां केवळज्ञान अने अष्टापद उपर तेमना निर्वाणी आपेली छे. प्रांत ग्रंथकारनी परंपरानुं वर्णन आपी आ ग्रंथ समाप्त करेल. छे.
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