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पुटरीक-8
दीक्षा तथा तेमने भिक्षानी अमाप्ति, कच्छ महाकच्छ, नमि अने विनमि, श्रेयांसकुमारनु दान, तक्षशिलाना उद्याना बाहु॥३॥
बलिने प्रभुनो समागम न थवो, प्रभुने केवळज्ञान थया पछी मरुदेवा माताने लइने भरतराजानुं वंदन माटे जवू, मरुदेवा मातार्नु सिद्धिगमन, पुंडरीकस्वामीनी दीक्षा अने गणधरपदनी स्थापना विगेरे वर्णवेला छे. - सर्ग २ जो-भरतराजानो दिगविजय, भरत चक्रीना अहाणुं भाइओनी दीक्षा, बाहुबलि साये युद्धनी तैयारीनु वर्णन आपेल छे.
सर्ग ३ जो-भरत अने बाहुबलिन युद्ध. बाहुबलिने केवळज्ञान, ऋषभदेवन स्फटिकाचळ उपर गमन भरतमहाराजे करेलु साधर्मिक वात्सल्य, भरतराजाए करेला चार वेदो, भरत पुत्र मरीचिनोमद, भरतमहाराजनुं चोवीश जिनना नामवाल्डं 18 बार श्लोकनुं वीतराग स्तोत्र, पुंडरीकस्वामीए पोताने केवळज्ञानना संबंधमां करेलो प्रश्न, प्रभुनी आज्ञानुसार पुंडरीकस्वामीनुं विमळाचळ प्रत्ये गमन वर्णवेला छे.
सगे ४ थो-विहार करता पुंडरीकस्वामीनं पोतनपुरना उद्यानमां आगमन, त्यां मौन रहेल रत्नचूडराजा साये 8 मुनिचंद्र नामना मंत्री- आगमन, मंत्रीए राजाना मौन थवाना संबंधमां करेल प्रश्न, पुंडरीकस्वामीए कहेल दान महिमा प्रद शित राजानो पूर्वभव, ते रत्नचूडराजानुं पांच हजार मंडलिक राजाओ साथे दीक्षा ग्रहण- वर्णन.
सर्ग ५ मो-पुंडरीकस्वामीन चंपापुरीयां आगमन, लक्ष्मीधरराजानुं चंद्रना छत्र सहित प्रभुने वंदन करवा आवq, हरिणगमेषोदेवे ते राजाने चन्द्रनु छत्र प्राप्त थवानुं पूछेलु कारण, पुंडरीकस्वामीए कहेल शियळ अने तप महिमा प्रदर्शित करनार लक्ष्मीधरराजानो पूर्वभव, एंशी लाख मंडळीकराजा सोथे लक्ष्मीधरराजाए लीधेली दीक्षानुं वर्णन. सगे ६ हो-पुंडरीकस्वामीनुं गजपुरनगरमा आगमन, त्यां सोमयशाराजानु विजयसेन मंडळीकराजा तथा गुणाराम
181 ॥३.
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