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________________ पुण्डरीक-8 चरित्रम् सर्गः-५ -COOOOOOOOOOOOOOmcocore 000000000000000000000000000000000000000000000000000 तस्थावतिस्वच्छमनाः स्वकायो-त्सर्गेण मायोज्झित एव रात्रौ ॥४४२॥ इतश्व- (अमरशेखरं नन्तुमाजगाम चन्द्रदेवः-) चन्द्रावतंसाख्यविमानसंस्थश्चन्द्राभिधानो ग्रहमण्डलेन्द्रः। निजावधिज्ञानमथो पृथिव्यां प्रयोजयामास तदैव रात्री ॥४४३॥ स चन्द्रदेवोऽमरशेखराख्यं ध्यानस्थितं राजमुनिं निरीक्ष्य । विहाय वेगेन निजं विमान-मेनं नमस्कर्तुमिहाऽजगाम ॥४४४॥ जाते प्रभातेऽथ महामुनीन्द्रो ध्यानं स संपूर्य चचाल यावत् । चन्द्राख्यदेवो मुनिमेनमेन:-प्रगाशहेतोः प्रणनाम तावत् ॥४४॥ नत्वा स चन्द्रो मुनिराजमूचे प्रभो! कृतार्थोऽस्मि तवाऽद्य दृष्टया । ततः प्रसादं कुरु मे निजेन केनाऽपि धर्मण सुवाचिकेन ॥४४६॥ ऊचे मुनीन्द्रोऽमरशेखरोऽथ कार्येण केनापि मया न दृष्टिः। क्षिप्ता सुरेन्द्र ! त्वयि किंतु कायोत्सर्ग विधिोष जिनोपदिष्टः ॥४४७॥ तथापि- जिनेश्वरं श्रीअभिनन्दनाख्यं नमस्कुरु स्वं कुरु भोः! कृतार्थम् ।। एवं गदित्वा चलिते मुनीन्द्रे स चन्द्रदेवोऽप्यचलत् सहैव ॥४४८॥ तं वीतरागं स मुनिः प्रणम्य पप्रच्छ चन्द्रेऽत्र तदा निविष्टे । भवत्प्रसादेन विभो! ममाद्य पभूव पूर्ण व्रतरत्नमेतत् ॥४४९॥ १ मालादिग्रहाः । २ एन:-पापम् cood ॥१९२॥ Jain Education national For Private & Personal Use Only Rijainelibrary.org
SR No.600051
Book TitlePundarik Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
Publication Year1924
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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