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पाक्षिक
सामाचा. रीशत
श्रवणेच
॥१४६॥
___७२
आरो कओ" इत्यादि कही करी तस्सुत्तरी कही, शक्तिसंभवइ सबह काउस्सग्ग कीजइ । एक श्रावक श्रीआचार्यमिश्र आगे आवी एक खमासमण देइ करी भणइ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सुत्तं संदिसाहुं ? गुरु संदिसावेह इसुं भणियइ सूत्रभवने हुंतइ, बीटें खमासमण देई करी भगवन् सुत्तं कढुं ? इसुं भणइ, गुरु भणइ कढ इस्युं कौ, छतइ इच्छं इसु भणी करी | उभउथकउ-हात जोडिकरि मुहे मुहपत्ती देइ तिण्ह नमुक्कार कही मधुरखर व्यक्ताक्षर सावधानचित्त सूत्रार्थ मनचिंत- अधिकार व तउ हुंतउ पडिकमणासुत्त गुणइ, बीजा काउस्सग्गे वर्तमान सावधान थका सांभलइ । साधुसरसा पडिकमतां हुंता तिण्हसंयसाठि पक्खियसूत्रं सांभलइ शक्ति अभावे बइठा सांभलइ सूत्रं प्रति सवे काउस्सग्गं करेइ संपूर्णसूत्रं भणियइलोचकारा४|नमुक्कारेण पारित्ता उभां थकां तिण्ह नवकार कही बेसी करी इत्यादि ॥७२॥
पणविधिः ॥इति पाक्षिकसूत्रमणने श्रुतौ च पूर्वपाठक्रमाधिकारः॥ ७२ ॥
अधिकारः ननु-लोचकारापणविधिः कस्मिन् ग्रन्थे निवेदितोऽस्ति ? उच्यते-श्रीविधिप्रपायां श्रीजिनप्रभसूरिभिः समीचीनतया| भणितोऽस्ति, तथाहि
पञ्चईएण लोओ कायबो अओ तविही भण्णइ, गुरुसमीवे खमासमण मुहपोतिं पडिलेहिअ, दुवालसावत्तवंदणं दाउं पढमखमासमणेण इच्छाकारेण संदिसह भगवन् लोअं संदिसावेमि, बीए लोअं करेमि, तईए उच्चासणं संदिसावेमि | चउत्थए उच्चासणं ठामि, तओ लोअगारं खमासमणपुर्व भणइ इच्छकार लोअं करेह, मत्थया रक्खधारिणो य इच्छाकारं ॥१४६॥ देइ तओ "पुर्व पडिवय नवमी, तइआ इक्कारसीइ अग्गीए । दाहिण पंचमी तेरसि, बारसि चउत्थीए नेरईए ॥१॥
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