SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ अथ चतुर्थः प्रकाशः॥ ॥ श्रीमत्स्यभणपार्श्वनाथाय नमः॥ ननु-श्रीजिनवल्लभसूरीणां परमसंविग्नानां कठोरसक्रियापात्राणां का सामाचारी प्रवर्तते ?, यदुपरि सर्वोऽपि श्रीखरतसे रगच्छसंघः प्रतिक्रमणादिक्रियां कुर्वाणोऽस्ति ? उच्यते-श्रूयताम् , एषा चत्वारिंशद्गाथारूपा तेषां सामाचारी, तथाहि "सम्म नमिउं देवं, देविंदवंदिअपयं महावीरं । पडिक्कमणसमाचारी, भणामि जह संभरामि अहं ॥१॥ पंचवि-15 हायारविसु-द्विहेलमिह साहू सावगो वावि । पडिक्कमणं सह गुरुणा, गुरुविरहे कुणइ इक्को वि॥२॥ वंदित्त चेइआई, दाउं चउराइए खमासमणे। भूनिहियसिरो सयला-ऽइआरमिच्छुक्कडं देइ ॥३॥ सामाइअपुवमिच्छा-मि ठाइड काउसग्गमिचाई। सुत्तं भणिअ पलंबिअभूयकुप्परधरिअपहिरणओ॥४॥ संजइ १ कविट्ठ २ घण ३ लय ४ लंबुत्तर ५/8 खलिण ६ सबरि ७ वहु ८ पेहा ९। वारुणि १० भमुहं ११ गुलि १२ सीस १३ मूअ १४ हय १५ काय १६ निहल १७ द्धी १८॥५॥थंभाइ १९ घोडगमाई] दोसरहियं, तो कुणइ दुइसिओ तणुस्सग्गं । नाभिअहो जाणुद्धं, चतुरंगुलठविअकडिपट्टो॥ ६॥ तत्थ य धरेइ हिअए, जहक्कम दिणकए अईआरे । पारेत्तु नमुक्कारेण पढइ चउवीसथयदंडं ॥७॥ संडा-18 सगे पमजिय, उवविसिय अलग्गविअयबाहुजुओ। मुहणंतगं च काय, पेहए पंचवीसइहा ॥८॥ उद्वियडिओ सविणयं, 273 Jain Education Inter a mvare & Personal use only X w.jainelibrary.org
SR No.600047
Book TitleSamacharishatakama
Original Sutra AuthorSamaysundar
Author
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy