SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश सप्ततिका. ॥४२॥ AAACANCAKROAC-AAM जह वालो जपतो कामकजांच उजुट नातं तह श्राखोजा मायामयविष्पमुक्को य ॥३५॥ आलोयणापरिणजे सम्म संपडि गुरुसगासे । जइ अंतरावि कावं करिजा श्राराहगो तहवि ॥३६॥ श्रागंतुं गुरुमूले जो पुण पयमेश् अत्तणो दोसे । सो जश्न जाइ मुकं श्रवस्स वेमाणि हो ।॥ ३७॥ जो पुण श्य मुणिकएवि सम्मं न दु उझरेश नियसनं । वक्रोयबो तो सो निसीहसुत्तुत्तनाएहिं ॥ ३० ॥ कस्सवि नूमीवश्णो जह श्रासो आसि सवलरकण । तस्सणुनावण महीनाहो जाजे महासबलो ॥३॥ तम्ममुराए दीसति सुंदरा गतुरगसंदोहा । बहुहत्यिसत्थकलिया जायार्ड हथिसाला॥४०॥ कुजगारा जंमागारा धन्नेहि तह धणेहिति । तस्सासेसा जरिया जह नश्पूरोहिँ जलनिहिणो ॥४१॥ अह सीमानूमिगया निवा असूयागया इय जति । सोऽवि दु को अस्थि जमो जो इणमस्सं अवहरेजा ॥४॥ वाहरियं तो तीरहिए िनरपंजरंतरग सो। नो केएवि अवहरि सक्को सक्कोऽवि जश् एश्॥४३॥ अह जंप एगनरो ज घाइजाइ विवि तत्थेसो । राया जंप एवंपि होउ न खहे अवगासं ॥४॥ 'तत्तो तेण सरगछिएण खुद्देण कंटएणस्सो। विछो मम्मपएसे कहमवि समयं बहेऊण ॥४५॥ सुदुमेण तेण सोण सहित घलि य कम्मि । परिहाय पदिय चारितोऽवि जवचारि॥४६॥ रन्ना नपि कह एस पुब्बलो बलाजवेऽवि वरतुर । घोम्यवाखेडुत्तं नाह तयं न दुबियाणेमो ॥॥ १ महाश्वबलः. 84 ॥४२॥ Jain Education in d e For Private & Personal use only jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy