SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ C %%AA%AR जं रजनोगमाई जणियं संसारहेउजूयमहो । गुरुकम्माएंगीणं तं पुण न दुखहुयकम्माणं ॥१॥ रजसिरिनुंजिरा विहु एगे खोयग्गगणमझीणा । जिरकाएवि नमंता एगे नमिया जवारने ॥१॥ सुच्चंति जरहसगराणो महाजोगिणोऽवि नूवश्णो । संपत्तसिद्धिसंगा निस्संगा सुधमणजोगा ॥ २३ ॥ इच्चाइ सोउमेएहिं गरुअवेरग्गगुणसमेएहिं । पमिबुन्जिय खामिय मुणिमुरीकया नाव दिरका ॥२४॥ जजएजुग्गा किरिया धरिया चित्तम्मि तेहिं गुरुपासे । सुत्तत्थे कोसवं सुमहामिमेसि संजायं ॥१५॥ तिवं तवंति सुतवं खवंति पुबान कम्मरासी। सफायज्कापरया सुन्निवि विहरति नूवखए ॥२६॥ श्रह पावकम्मसमुदयवस ससनब कायरमणो सो। विस्सरियसाहुकिरि सिरि सिढिलो अनू चरणे ॥२७॥ वहश् मणे जाश्मयं श्रमयंपिव सुगुरुवयणमवि वम । रम पमायम्मि सया गमइ मुहा काखमविणी ॥२०॥ वह सिवजहो जंपश्तं पश् किं जाय एरिसं कुणसि । वहसि अविणीयनावं जाश्मउम्मत्तनब तुम ॥२॥ जीवो जाश्सु सबासु सबेसु य कुलेसुवि । सबासुंपिदु जोणीसुं सवाणेसु सबया ।। ३०॥ अकयारिहधम्मो सो नमिठे य नमिस्सई । को कीर मयं जाईविसए विसए तहा ॥ ३१ ॥ अफ मया बुद्धिमया न हु कायवा कयावि उरकमया । सेविजंता अमया पहा विसऽविश्रब्नहिया ॥ ३॥ हरिएसिबलो साहू सिरिवीरो तहय चित्तसंजूया । चाणो धणेगे जाश्मया होणजाश्वा ॥ ३३॥ तत्तो नियदोसमिमं सम्म गीयत्यगुरुसमीवम्मि । श्राखोसु उकुमणो होलं.जम्हा जवे सुद्धी॥१४॥ 83 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy