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उपदेश
सप्ततिका.
॥१५॥
वरसाख बाहिरि पत्तल थविरसत्यि मुणिवर अश्मुत्तउ । वास बहुख खिवंता गंठिय रमणकति इन उक्कंठिय ॥६३॥ मट्टी तणीय पाखि सो बंध खखहवंत जलवेगिहिं रुंधश् । रितलाय जिमंमिगह मिहइ नाव जेम दंमिहिं करि पिन ॥६५॥ हचं नाव: मुफ चाइ नाव श्म जलि रमलि कर सो जाव । वय अणुसार मइ उप्पजाइ सञ्चिय वत्त जगह। नणु गिङ ॥६५॥ अविरमुर्णिदिहिं ताव सुहकीय तत्वयणिहिं खुड्डयमुणि संकिय । खकिय जाव अहोमुह जाउं सम-18 वसरणि मुणिसत्यिहिं आई ॥ ६६ ॥ थिरमुणिहिं पढ़ अग्गा साहिय दगमट्टी य नणु एणि विराहिय । माहीत अश्मुत्तकुमारं वरब्धियसंजमजारं ॥६॥ अन्नपाणदाणिहिं ससालह श्रम्ह सीस खुड्डय परिपाखह । श्य पहु जाम जणिय ता पुन्बई थविरमुणिंदे सुणंता अब ॥ ६ ॥ जयवं जब अनव कुमारो चरमतणू अचरिमतणुधारो । पडु आइस जब चरमंगी श्य सुणितु मुणि दुय सुहसंगी॥ ६ ॥ पडुपर लग्गिय सुछ खमंतन पुण पुण विषयत्नत्ति पणमंत । इक्कारस अंगाई अहिक्रिय सिरि श्रश्मुत्ति चरणविहिसक्रिय ॥७०॥ तव करे गुणमणिसंवठर न धरश्र श्रई दम महर । अकम्मम मूलुधिदिय केवलनापति अनिएंदिय ॥ १॥ तेर वरिस सबाऊ पालिय संजमजखि अप्पलं
परकाखिय । निषुरमणि सयंवरि वरीयत दंसहनापरयणगणनरीयल ॥॥ घात-इपिपरि बहुयत्तणि जेम बुह*त्तणि अश्मुत्त जिणधम्मकिय । तिणि परि श्राराधन सिवसुह साधन नवियखोय खेमेहिं सहिय ॥ १३॥
॥ इति श्रीश्रतिमुक्तकसन्धिः॥
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