SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश सप्ततिका. MA%AAAAA% नवजागे काऊणं तं खेत्तं श्रप्पणाय विहरति । मिनपरावित्तिं अपमत्ता ते पकुवंति ॥४॥ पुरदेवया य तेसिं गुणेहि श्रावक्रिया कुणइ जत्तिं । तेर्सि सीसो दत्तो विहरित्ता सुचिरमाया ॥५॥ पस्सामि कहं वट्टति सूरिणो सुहिय असुहिया वावि । पुविले चेव चवस्सयम्मि दिशा सुउच्ण ॥६॥ निच्चनिवासी एए उवस्सए तेसि नो पविणे सो। श्रासन्नतणकुमीरे वि गुरु नमिय मायाए ॥७॥ जाणितु जिस्कवेखं पत्तं गहिचं गुरूण पुचीए । खग्गो य श्रवन्नाए पन्नापविहीणचित्तो सो॥७॥ विहरति ते निसंगा नीनच्चकुलाई काखदोसेण । पाविति अंतपंताई स संकिलस्सइनियभणम्मि ॥ ए॥ नहु सुख सहगेहाई दसेई एस सढसहाविक्षो । खरफुत्तण सो विना संगमगुरूहिं ॥१०॥ तच्चित्तरस्कषत्वं गुरू पविणे धणगेहम्मि। रेवश्दोसग्गहिर्ड तदंग रोय सया वि॥११॥ संजाया उम्मासा सेिं न सह सिसू समाहिं सो। मा रुयसित्ति जणित्ता चप्पुनिया वाश्या गुरुणा ॥१२॥ तयणायनए तकालं रेवई सुरी न । सो रहि रोयंतो तुजे जण य सुयरं ॥ १३ ॥ पमिखाजिया य गुरुपो मोयगमाईहिं गुरुयजत्तीए । सरसाहारं दाउं विसजिउ सो विचिंते॥१४॥ दावियमेगं तु कुखं विरस्स एएण मे सयं जम । सिरिमंघरेसु सर्व संपलाइ तत्य एयस्स ॥ १५॥ एयं विमंसमायो उवस्सयं सूरिसंतियं न गर्छ । पायरिया सुरं हिंमिऊण समुवागया वसहिं ॥ १६ ॥ अंतं पंतमसिधा सुत्थावत्या कुएंति सज्जायं । गोयरचरियपमिकमवेखाए गुरूहिं सो जणि॥ १७ ॥ 30 -RASSACRECEREST Jain Education International For Private & Personal use only viwww.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy