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विहेयवं ॥ ८० ॥ इय सगरचक्किचरियं संखित्तं वृत्तमित्थ वत्थुम्मि । जवा जावित्तु मणे आराहद समाधन्मधुरं ॥ ८ए ॥ ॥ इति शोकावकाशाप्रदाने श्री सगरचरित्रम् ॥
अ "जयं न कार्य” श्रत्रार्थे श्रीकामदेवदृष्टान्तः सन्धिबन्धेनोच्यते
सिरितिसलानंदणमणचाणंदण वनमाण जिणवर नमिय। पत्र शिसु-हज़वंगद् सत्तम अंग कामदेव सावयचरिय ॥१॥ धनधन्नसमित्थइ देस, मगहा निहाण सुदसंनिवेस । गयकंपा चंपापुरीय जाणि, तिहिं कायरयणमतिणीयखाणि ॥२॥ जियसत्तुराय पुरि करइ रजा, अरिदलवल गंजणक जिसका । गाहावर निवसइ कामदेव, सुह विलसइ जिम दोगुंददेव ॥ ३ ॥ तसु जद्दा नाम सुरूव जक, इनिम्मल सीलगुणाऽणवडा । श्रह पुन्ननद्दवरचेश्यम्मि, नाणा विहतरुगण सोहियम्मि ॥ ४ ॥ सिरिगोयम सुदुम पमुरक साहु, परिवरिय हरिय जवदुरकदाडु । विहरंतन पत्तनं वीरनाह, चंपापुरिपरिसरि सुरसाद ॥ ५ ॥ जियसत्तुराय परिवारजुत्त, सिरिवीरचरणवंदनिमित्त । वह कामदेव गिहवर पवित्त, कियवेस समवसरण म्मि पत्त ॥६॥ पट्ट पण मिय देसण सुणीय रम्म, नियचित्तिहिं जाणीय धम्ममम्म । सम्मत्तमूलवय बारसेव, पहुपासिहिं गिरहइ कामदेव ॥ ७ ॥ अरिहंत देव गुरु साहु धम्म, जिएधम्म एह सम्मत्त म्ह । परतित्थियदेवा न हु नमेसु न दु अन्नतित्थ सेवा करेसु ॥ ८ ॥ न हु थूलजी वहिंसचं कयात्रि, तह पंच अलिय टाललं सयावि । परधण न दु गिएहलं पावईन, मद्दा विए | रमणी नियम ए ॥ ए ॥ ववसाय कवंतरि तह निहाणि, बक्कोमिकण्यपरिगहपमाणि । बग्गोडल सुरही सदस सहि, पीएसु नीर श्रागासवुद्धि ॥ १० ॥ सय पंच पंच हख सगम जाणि, पवहण चत्तारि तदा वखाणि । सयसड्स पाय चुष्प
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