SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CIAR य चदृश्यनग्गेण निारया ॥१२॥ तक्यगिहकम्माणि य दूसइ रूस खणे खणे पुच । न तकरण दावइ जिस्कं निस्कायराणेपि ॥ १३ ॥ न सह तकरफासं पसत्यवत्थूण गेहमन्नम्मि । जोयावश् न दु अन्नं मन्नंती वेरिणिं वहुचं ॥१॥ सो कोवि नस्थि विण जो साहिबाई न ती सस्सूए। तहवि न तुस्सइ पस्सा लिई मूसी बिखानुब ॥ १५॥ पाए परकाल सा अहन्नया तहवि पन्हियाइ हया। निमल्लिया य बाद रे उसु जाहि दूरेण ॥ १६॥ जइ संवाहर अंग तीए हत्याई तोऽवसारेइ । गेहवारं न मुयश मा जरका खंगुम ॥ १७॥ न दु वंदर गुरुदेवे चिंतश् मणसावि नेव धम्मविहिं । पुर्व संजग्गपिहाणियाइ माइ संचरि॥१०॥रे कह जग्गा एसा सा मुसा दोसमुनवर एसा। श्रकोसंती तीए वहुं महारोसदोसवसा ॥१॥चि सा जिणसिरिया निहिरीया मुक्कजायमनाया। रोसेण धमधमंती मणे बहुश्रदोसफाणिज्ञा ॥२०॥न दु पमिजास किंचिवि धसिरिया बहुखमा खमुब वहू । सबेण परियणेणं सुणि तवश्यरो सबो ॥१॥ विमलेणवि विनायं तहुविलसियमसेसमवि चित्ते । जय तेण उवाखमा तो खग्गा संमुई है चवित्रं ॥॥उबह कोहमसमं विसमं जं किंचि जंपए मदुरा (मुहरा)। सवेणवि तो चत्ता असलवन्नुव जिणसिरिया ४॥२३॥ सम्मइंसणन मिहादसएमयम्मि कयनिज । मोहबलेणुविधा सा जाया धिष्पाविज ॥ २४॥ जलणुव पक-दू खंती संपन्ना तिवरोसदोसेण । इत्तो कोवि महिही सगीण विमलसिस्सि ॥२५॥ दग्गेहम्मि समेट अहन्नया तेण जोयणे *पिञ्चा । दिक्ष गिएिणं अजंपिरि नियन्दुसं बहुहा ॥ २६ ॥ श्रक्कोसंती जिणसिरिनामा वामाजिजासणुम्मत्ता । तो | तेषं वारियं मुहा कई खिसि श्मीए॥२७॥कस्सेयं नणु गेहं देवि श्रसासयं तहा खही। कश्वदिणावसाणे न 242 MARACK Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy