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________________ सप्ततिका उपदेश॥११॥ ॐॐॐॐॐॐॐ खेण, मुणिरायमविधिय पत्रिवेण । बहुपत्थर पिरिकय परियको य, श्रह पुल्लिय तेण व अप्पयो य॥ए। सो कत्य साहु जो इत्य हुँत, जियरागदोस मुणिगणमहंत । तेणवि उजोहण तषिय वत्त, वनारिय सुषिय सो पुरक पत्त ॥ ३०॥ रिहिं अवसारिय उवल तेण, श्रासासिय मुणि सह परियषण । तसु देह सजा काऊण राय, खामीय संपत्तल गेह- नाय ॥३१॥ दवदंतरायरिसि सुचित्त, श्य नावण नावसुप्पवित्त । खणनंगुर देह श्रसार एह, मखमुत्तपरीसहतपर गेह ॥३॥ जश्त्य सहिजार किंपिक, सिवसुह पाविजार तेण च । न हु कोइ मित्त मह सत्तु तेम, फरुसरकर हउँ (उ) वागरउँ (उ) केम ॥ ३३ ॥ श्रवराहपरेसुवि पोरवेसु, नहु रोस वहउँ (1)जीवियहरेसु । उवयारिसु गुणसंथवपरेसु, समचित्तवित्ति तह पंवेसु ॥ ३४ ॥ कश्यावि जुहिच्खिजूमिपालु, सेवा समुवागय अकिवालु। मुजोहणममुजाणमणिक,श्य तजाइ रे रे धित छ ॥ ३५ ॥ कुखकमबद्यासण हीणचित्त, तुह जम्मवि जीविय अप्पा वित्त । अवहेलिय किणि कारणि मुणिंद, तई (३) सीयखसोम जइह चंद ॥३६॥ तश्या तर (उ) कत्थवि गया सि, गिजांती न सुणीय गुणहरासि । हस्थिपचर वेडिय नियबखेप, जश्या दवदंतनरेसरेण ॥३७॥ पढम पंचवि अम्हे जिया य, पहा पंचवि नियइंदिया य । तो पंचमहवय धरिय जार, जिप्पिय कुण सकश मुषि उदार ॥३०॥ नमणिका एह जगवंदणिज, पुजाणवि मुणिवर एह पुस । त्वंतरि सह सहत पीक, दवदंतरायरिसि सिरिकिरीमा ॥३॥नियवाटतपन पद्धांत जाणि, चत्तारि कसायह करीय हाणि । मुषि खीणच निचखसुक्काषि, चंचखजिय आणीय इकाणि ॥४०॥पमिवनिय कार्यतरियमेस, पहाखिय कम्भिधप असेस । चारुहिय खवगसेपिं मुषिद, संप 224 KALACESUCXRES ॥११॥ Jain Education Inter For Private & Personal use only Malaw.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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