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________________ उपदेश सप्ततिका. ॥ए ॥ पमिलातील मुर्णि महुरासणपाणमोयगाहिं । दिघाउँ सुविहिणा दाणं दिती जत्तीए ॥३॥ तहऽवि न गिएइंति बहुँ मुद्दु मुटुं न य मुहं पलोयंति । जश्णो शरियासमिया नीरागा एसणासत्ता ॥४॥ सवियारासुवि अवियारमाणसा साहुणो श्मे धन्ना । मणयं न रागखेसो जेसिं नणु उस थीम् ॥ ५ ॥ श्रयं पुणो अधन्नो नमीविमोहेण विनमिङ निविमं । नढें करेमि पुर पुरपहुणो इथिलोलस्स ॥६॥ अजसो मए न गणि हणि य कुखक्कमो कुसंगण । धिची में नणु मुफ बुद्धी जस्सेरिसी जाया ॥ ७॥ इंसुकले कुले मे खग्गो मसिवुच्चले महामलियो । एएण उरायारायरणेणं निंदणिोण ॥ ७॥ को मम्मुहं पलोय खो सोउँदएण किएहयरं । जो धन्नो कयपुग्नो तहा श्रवन्नोदया नीरू ॥ ए॥ सोऽहं इंसोऽवि धुवं कार्ड जाउ कुकम्मदोसेण । जेण नमी सुश्कुमी विक्षुब समीहिया जोत्तुं ॥ ए॥ अहमहमो पुत्रमहो मतोऽवि निवो नमीइ जो सत्तो । सुबहूसु बहूसुवि सुंदरीसु स्वेण संतीसु ॥ १ ॥ जस्साजंगुरजोगा संजोगा सयणमित्तवग्गरस । सोऽवि थहो! खुधमणो एईए नीयनारीए ॥ ए॥ नारी हि न के नमिया चमिया जे गोरवंमि इत्य जए । तेऽवि दुधसत्ति पमिया मोहमहापासगखबा ॥ ए३॥ धणजुबणहरणेणं अरिजूचा जा समग्गलोयस्स । सा नारित्ति कहं नणु जणिया सखे वियम्लेहिं ॥६॥ एए पुण कयपुन्ना समग्गसत्तेसु धरियकारुमा । समतणमणीहिरमा समणा उत्तमकुखुप्पन्ना ॥ ए५ ॥ १न भरिरिति. 196 दा ॥ए ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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