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________________ 2445 सप्ततिका. उपदेश ॥ए ॥ SHRSSAGE सावण श्रासादं जाव अजका श्मे समुझविया । विहा य शत्यमासा सुवशमासा य रुप्पस्स॥१०॥ ते मासा य अन्जरका धन्नयमासा य पुवमिव नेया। एगे व वे जयवं? अस्कए अबए व जव ॥११॥ जयवमवध्यिरूवेश्रणेगनूए व एगए वा जावि नविए व नूए ? सुया अपेगे व एगे वा ॥१०॥ अहमेव मुवेऽवि तिगं जा वयणमणेगनूयनविएवि।से केणण अहो जाव एगेव अहमेव ॥१३॥ दवघ्याइ एगे मुवे श्रहं नाणदंसणविईए । तह अरकए य श्रबय अवछिएवावि अहमेव ॥ १०४॥ उवयोगविनतीए श्चाइसमुत्तिजुत्तिहेऊहिं । पमिउत्तरेहिं दिन्नेहिं तोसि सो सुद हियए ॥ १०५॥ केरिसया एयमई निस्सीमा चरिमा यु एयस्स । जाकिजाइ एस गुरू ता किं नणु सुरतरू मिखिलं ॥१०६॥ किं एस मुत्तिमंतो सिरितो श्रह व॑हप्पई वावि । श्रहवा चउरो चउराणणुत्ति चिंत्तित्तु श्य चित्ते ॥१७॥ विन्नवश्गुरुं पमिबुघमाणसो सो य सोयपरिचत्तो। जयवं तुहंतिएऽहं सह परिवायगसहस्सेण ॥१७॥ निरवकं पबऊ गिएिहनमि(वामि विरमिलं ) मिला । सम्बासयाण जम्हा अविसंवायत्तणं वयणे ॥ १०॥ म (न) पमा काययो श्रमेयंम्मि श्य गुरू ना तो सो अश्व मुझे सु सु जह रसाखवणे ॥११॥ चचं कुलिंगिविंग दिखं करकीकरे सपरियषो। अह सो अहिगयसुत्तो तत्तोवग नियपयंमि ॥ १११॥ संगवि गुरुहिं सयं च ते साहुसहससंजुत्ता । पुंगरगिरिमारुहि मासमुववसिय सिद्धि गया ॥ ११ ॥ अह सुयसूरी दूरीकयक्यपूरजूरितिमिरोहो । सूरुव दित्तते पमिबोहित्ता नवियपउमे ॥ ११३॥ 188 ॥ ४॥ Thin Education in 20 For Private & Personal use only X www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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