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________________ उपदेश सप्तति का. ॥ ५॥ अविहीपमिलेहाए, वाचका उदारि। विराहणार खेसोऽवि, गणि न हु माणसे ॥ १६ ॥ पढमं वयमेएण, जग्गं निग्गंथरूविणा । तब्लंगणावि पंचावि, जग्गा जुग्गा महवया ॥ १७॥ तत्तो श्रागमजुत्तीए, एए नणु कुसीलया । साहुणो गोयमा वुत्ता, तत्तावगमवक्रिया ॥ १० ॥ तत्तो एएण अण, गोयमा पवियारिखं । महब्बयाणि गिफाणि, सुसाहुजणसंगमे ॥ १०ए॥ जयवं केण अणं ? जेणं निसुण गोयमा । सुसाहू वा कुसलो वा, तश्यं नो लवंतरं ॥१९॥ अश्कमिज अहवा, साहू सादुत्तमुत्तमं । साव सावगत्तं च, जहुत्तमणुपालिया ॥ ११ ॥ नो विराहिज साहुत्तं, साहू नो सावर्ड तहा । नियं सावयधर्म च, स नवे सिधिनायणं ॥ १ए॥ नवरं साहुधम्मो छ, अश्व पुरणुच्चरो । कम्मरकयकरो वुत्तो, जगदंसीहिं सबहा ॥ १३ ॥ जहन्नेणवि पाविका, साहू श्रमजवंतरे। वरकयं मोरकसुरकोई, निराबाई निरामयं ॥ १४॥ सावयत्तेण सुक्षेण, देवत्तं माणुसत्तएं । परंपरा मुस्कस्स, साहगं तं वियाहियं ॥ १९ ॥ तं खन्नई चरित्तेणं, तं पुणो निरवलयं । सजायति नरा धीरा, दसनेयमणुत्तरं ॥ १६॥ उवासगाणं तह बकवाणि, सहस्सरूवाणि सुए बुयाणि । जं सक्कई तं खलु पालजा, गयाश्यारं वयमायरेण ॥ १॥ उप्पन्न नाश्वसावर्ड सो, कहिं पहू साह वीरनाहो। सुषेहि सो गोयम नेमिपासे, वएप पावगमाल सियो ॥१॥ परिचश्ता दु कुसीखसंगईगइंगया सिधिमणेगसो जणा। जिणागमुद्दिविही सबहा, रमेह जो साहुसुसीखसेवणे ॥१एमा 170 ॥ ५॥ Jain Education International For Private & Personal use only W w w.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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