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________________ उपदेश सप्ततिका. उववना गयपुन्ना जूयपिसायाण जस्करस्काणं । अश्हीणवाहणते तऽवि चविळण मिष्ठकुखे ॥ ३५॥ कुणिमाहारं तुंजिय असुहन्फवसापड त मरिछ । सत्तमनरयम्मि गया गयाहया सुरकसमहिगया ॥१६॥ तत्तो नपट्टित्ता इत्तो चलवीसिगाइ तश्याए । सम्मत्तमुत्तमं ते खहित्तु सुस्सावयकुखेसु ॥9॥ तत्तो तश्यम्मि जवे चउरो नणु सिज्जिहंति ते मुणियो । सिकिस्सन हुएगो पंचम ताण जो जे ॥१०॥ एगंतमिछदिछी जर्ज जई सो तहा अजबो य । नबो श्रइव अजबो जयवं मह कहसु सो सुमई ॥ ए॥ गोयम नबो जइ एस तारिसो तो मर्म समाणो य । उप्पन्नो कहसु कहिं गोयम परमाइमियगेसु ॥४०॥ जयवं किं जवाएं परमाहम्मियगई खु संजव। एवमिणं जे पुरिसा समरा दोसरोसिधा ॥१॥ मित्तस्सुदएणं हिवएसपि कहियमे रिसयं । श्रवगणिय बारसंग सुयनाणं सुकयगुणगणं ॥३॥ अमुणिय समयसरूवं निच्चमणायारसंसणं काउं। उन्लप्पियं तमेव य जहा सुमणा कुसीखाणं ॥३॥ एगंतपरकवाडे कर्ज जळ होइनूरिजवनमणं । एएवि जइ कुसीला ता न सुसीलो जए कोऽवि ॥४॥ गहियबा तह दिरका पासे एएसिमेस मह नियमो। निब्बुधि जहा तं तहा धुवं सोऽवि तित्ययरो ॥ ५॥ श्ममुच्चरमाणेणं महानिमाणेण सुमश्णा तेण । बछ चिक्कणकम्मं धम्ममि पर मुंहत्ताए ॥६॥ कमणुध्यिममुणा पहा सिष्ठा सिढिलमुपिपासे । परमाइम्मियनिकरगई गई चविय तत्वोऽवि ॥७॥ १गदैराहताः- . 162 5 ॥ १॥ __JainEducation For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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