SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उप० १४ Jain Education Internatio ताणं गुणरया निही सयण मित्ताण सुरककारीण । न पहुष्यंति मणोरहमालाई विसाला ॥ ७ ॥ हियमहिमा न चेश्एसुं न देवपूया | साहम्मियवचनं कार्यं सामत्थमवि नत्थि ॥ ८ ॥ तो गेहं विचिंतियं निजणेहि हिययम्मि । जाव सधणो मणुस्सो पसंसणिको जऐ ताव ॥ ७ ॥ सोऽवि पासवत्ती संपकाइ संपया घरे जाव । वुद्धोदयं घपि दु विकुलिया नणु परिचय ॥ १० ॥ गम्म तत्थ विदेसे सहवासी जत्थ दीसए न जणो । न हु दंसिकाइ वयणं सयणाएं निझत्तम्मि ॥ ११ ॥ दूरगयाम्हाणं पुऊंति मणोरहा य कश्यावि । तदभावे पचा पाविकार मुरक सुरककरी ॥ १२ ॥ परिजाविय दोहिविकमागयं नयरमुज्जियं सहसा । जो जम्मि विरयचित्तो सो तम्हा दूर जाइ ॥ १३ ॥ कश्वदिपते मग्गे वच्चंतयाण नणु तां । सावयसहिया मिलिया अणगारा पंच सायारा ॥ १४ ॥ तो नाइलो पपइतं पड़ जो सुमइ एस मुणिसत्थो । वट्ट सुतरो एएए समं पवच्चामो ॥ १५ ॥ वितहत्ति लिए मिलिया सत्यम्मि जाणो दोऽवि । जा जंतेगपयागमेए ता नाइलो जइ ॥ १६ ॥ जो जद्द सुसु हरिवंस तिलय सिरिने मिनाह जिण पहुषो । मुहकमलाई निसुप्रियमिमं मए सुनिसन्नेणं ॥ १७ ॥ एरिसए मुरूति कुसीले न ते निर (रि) रिका । दिछीएवि डु जाउय एए खलु तारिसे चैव ॥ एहिं समं गम न जुए श्रम्ह श्रप्पसत्थेणं । वच्चिस्सामो एए वयं तु समणा जहिलाए ॥ १९ ॥ १ एकाकिनी. २ व्रजन्तु. १८ ॥ 157 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy