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उपदेश
॥ ७२ ॥
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त्रा जमाखिकषोच्यते
दसवासेहि गएहि नाणुपत्तीइ वीरनाइस्स । पढमो निन्हव जार्ज जमालिजे तस्सरूव मिणं ॥ १ ॥ ते चि काले ते समए कुंरुपुरनयरे । सिरिवीरजिघ्नइणी सुदंसणा तस्सुय जमाली ॥ २ ॥ मझ्या विठणं सोप जिदिप (य) मूले । रायसुयपणसएहिं तब्जका सामिणो धूश्रा ॥ ३ ॥ तनाम श्रण(गु)कासी बीयं पियदंसपित्ति विरकाया । सावि तमणुपबइया सहस्सनिवइब्जजुवइजुया ॥ ४ ॥ जह पन्नत्तीए तह यो विन्थरो समग्गोऽवि । इक्कारसंगधारी वीरान्नाइ सावत्थं ॥ ५ ॥ सो पत्तो पंचसयाग संपप्प तिंडुगुञ्जाएं । नियपरिवारसमे स कोगे चेइए वाइ ॥ ६ ॥ कश्वय दिपते तप्पंतेहिं लुकनरकेहिं । तस्सुप्पन्नो सहो दाहजरो देहदाहकरो ॥ ७ ॥ न तर सो वविसि सकछतणु मुणी इय जइ । मह संथारं पठणह तेहि तर्ज काउमारो ॥ ८ ॥ पुरवि कह क जो किलाइ वा ते जयंति सामि कर्ज । तो उहि स पिलाइ तदेव कितसंथारं ॥ ए ॥ तो चिंता जाया नं यवं जणेइ सिरिवीरो । चलमाणे नए चलिए निकिन्ने निरंते य ॥ १० ॥ तन्नं मिठा सवं दीस पञ्चरकमेव एयं तु । जं कि माणसंथार य न कर्ज इमं पयमं ॥ ११ ॥ चमाणेऽवि चलिए जिन्ने निकरियमाणेऽवि । एवं स मणे वीमंसिऊण समये इमं जइ ॥ १२ ॥ जो जो सुबह नियंग श्रश्रक जं पहू इमं वीरो । चलमाणे नए चखिए निक(क्रि) ने निकिरिजमा ॥ १३ ॥
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सप्ततिका
॥ ७२ ॥
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